पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९३

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अभागो । मेरट कारागार अस्यो ये तो समुमत व्यर्थ सब यह रोटी उतपात । याकूब भारत कोष बिनास को हिय अति ही अकुलात २६ और सबै बर्बर-दल इत उत बल-हत भागो ।९ ईति भीति दुष्काल सो पीड़ित कर को सोग । गो-भक्षक रक्षक बनि अंगरेजन फल पायो । तासों करि अति क्रोध सत्रुगन मारि मगायो ।१० स्ट्रेची डिजरेली लिटन चितय नीति के जाल । ताह धन-नास की यह बिनु काज कुयोग ।२७ पंचम पांडव जिमि सकुनी गन्धार पछार्यो । बृटिश रिषभ तिमि खरब काबुली मध्य मार्यो ।११ | सबहिं मांति नृप-भक्त जे भारतबासी-लोक । फसि भारत जरजर भयो काबुल-युद्ध अकाल ।२८ रूस उर सूल दियो ईरान दबायो । बृटिश सिंह को अटल तेज करि प्रगट दिखायो ।१२ शस्त्र और मुद्रण विषय करी तिनहुँ को लोक ॥२९ सुजस मिले अंगरेज को डोय रूस की रोक । प्रथम जबै काबुलपति कछु अभिमान जनायो । तवे पटिश हरि गरवि कोपि वा चढ़ि धायो ।१३ बढ़े बुटिश बाणिज्य पै हम को केवल सोक ॥३२ शेर अली भजि मांद समाधि प्रबेस कियो तब । भारत राज मंझार जो कहूं काबुल मिलि जाई । ठहरि सकत कहं अली रंग-नायक उमडै जब ।१४ जज्ज कलक्टर होइहें हिंदू नहि तित घाइ:३१ ये तो केवल मरन हित द्रव्य देन हित हीन । रूस हूंस दै घूस प्रथम तेहि आस बढ़ाई। धोखा देके अन्त धूस बनि पोंछ दबाई ।१५ तासों काबुल-युद्ध सों ये जिय सदा मलीन ।३२ खैबर दर अरगला कठिन गिरि सरित करारे । इनके जिय के हरख को औरहि कारन कोय । जो ये सब दुख भूलि के रहे अनंदित होय ।३३ शत्रु हृदय सह तोड़ि तोड़ि रिजु कीन्हें सारे ।१६ अब जानी हम बात जौन अति आनंदकारी । काबुल का बल करै बृटिश हरि गरजि चढ़े जब । बन गरजे केहरी भजहिं झट खर खच्चर सब ।१७ जासों प्रमुदित भये सबै मारत नर-नारी ।३४ नीति बिरुद्ध सदैव दूत बध के अघ साने । नृप रहमान अयूब दोऊ मिलि कलह मचाई। रूस कुमति फसि इस आप सों आप नसाने ।१८ अंत प्रबल हवे लिय अयूब गन्धार छुड़ाई ।३५ सिंह-चिन्ह को भुजा चढ़ी बाला-हिसार पर । आदि बंस नव बस दोऊ काबुल अधिकारी । जय देबी बिजयिनी सोर मो काबुल घर घर ।१९/ जाहि जातिगन चहै कर निज नृप बलधारी १३६ यामें हमरो कहा कउन उन सों मम नाता । पुनि परतिज्ञा चेति सत्य सो बदन न मोड्यो । खल-दल-बल दलमलि तृन-सम अफगानहिं छोड़यो ।२०/ भार पड़े मिलि लड़ें भिड़े झगड़े सब भ्राता ।३७ दृढ़ करि भारत-सीम बसें अंगरेज सुखारे । नृप अबदुल रहमान कियो आदेश सुनाई । सुद, सत्य अरु दान-बीरता तृतिय दिखाई ।२१ भारत असु बसु हरित करहिं सब आर्य्य दुखारे ।३८ तजि कुदेस निज सैन सहित सब सेनापतिगन । सत्रु सत्रु लड़वाइ दूर रहि लखिय तमासा । भारत में फिर आय बसे जय कहत मुदित मन ।२२ प्रबल देखिए जाहि ताहि मिलि दीचे आसा ।३९ लिबरल दल बुषि मौन शांतिप्रिय अति उदार चित । ताही सो उत्साह बढ्यो यह चहुँ दिसि भारी । जय जय बोलत मुदित फिरत इत उत नर नारी ।२३ पिछली चूक सुधारि अबै करिहै भारत-हित ।४० नहि नहिं यह कारन नहीं अहै और ही बात । खुलिहै 'लोन' न युद्ध बिना लगिहे नहि टिक्कस । जो भारतवासी सबै प्रमुदित अतिहिं लखात ।२४ रहिहै प्रजा अनन्द सहित बढ़िहे मंत्री-जस ।४१ यहै सोचि आनंद भरे भारतवासी जन । काबुल सों इनको कहा हिये हरख की आस । ये तो निज धन-नास सों रन सों और उदास ।२५ प्रमुदित इत उत फिरहिं आज रच्छित लखि निज धन ।४२ 19 छोटे प्रबन्ध तथा मुक्तक रचनायें २५१