पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/२१

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(२) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र ने बचपन में ही पितहीन होकर भी विद्वत्ता और सच्चरित्रता का ऐसा उदाहरण छोडा है कि जिसे देखकर ईश्वर की महिमा स्मरण पाती है। इसके पहिले कि हम इनका कुछ चरित्र लिखें, इनके सुप्रसिद्ध वश का बहुत ही सक्षेप से वर्णन कर देना उचित समझते हैं, जिसमे हमारे पाठको को इनका और इनके पुत्र हिन्दीप्रेमियो के एकमात्र प्रेमाराध्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का पूरा परिचय मिल जाय । भारतेन्दु जी स्वरचित "उत्तरार्द्ध भक्तमाल" मे निज वश परम्परा यो वर्णन करते हैं -- "बैश्यअन-कुल मैं प्रगट बालकृष्ण कुल पाल । ता सुत गिरिधरचरनरत, वर गिरधारीलाल ॥१॥ अमीचद तिनके तनय, फतेचद ता नद । हरखचद जिन के भए, निज कुल सागर चद ॥२॥ श्री गिरिधर गुरु सेइके, घर सेवा पधराइ । तारे निज कुल जीव सब, हरि पद भक्ति दृढाइ ॥ ३ ॥ तिनके सुत गोपाल शसि, प्रगटित गिरिधरदास । कठिन करम गति मेटि जिन, कीनो भक्ति प्रकास ॥४॥ मेटि देव देवी सकल, छोडि कठिन कुल रीति । थाप्यो गृह मै प्रेम जिन, प्रगटि कृष्ण पद प्रीति ॥५॥ पारवती की कूख सौ, तिन सो प्रगट अमन्द । गोकुलचन्दाग्रज भयो, भक्त दास हरिचन्द ॥ ६॥"