पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१०४

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६२ -- भारतेंदु हरिश्चन्द्र इस दोहे के 'कल' शब्द पर प्रसन्न होकर भारतेन्दु जी ने इन्हें सौ रुपये पुरस्कार दिये थे। इन्हीं पंडित जी ने सायन तथा निरयण गणनानुसार भारतेन्दु जी की जन्मपत्री बनाई थी। यह पुस्तकाकार प्रकाशित भी हुई है । भारतेन्दु जी ने इसके लिये उन्हें पाँच सौ रुपये देकर सन्मानित किया था। विद्वद्वर भारतमार्तड श्री गट्टलाल जी की विद्वत्ता, आशु कविता तथा शतावधान की शक्ति विख्यात थी। जिस समय यह काशी में पधारे थे उस समय भारतेन्दु जी ने इनके सन्मानाथ एक बड़ी सभा की थी। इसमें काशी के सभी प्रसिद्ध देशीय और यूरोपीय विद्वान एकत्र हुए थे । श्री गढूलाल जी दोनों आँखों के अंधे थे, पर उनकी ज्ञानदृष्टि अपूर्व थी। समस्यापूर्ति बात की बात में करते थे। अनेक भाषाओं में कई सज्जनों ने भिन्न भिन्न प्रश्न किए पर आपने प्रश्नों की समाप्ति पर सबके उत्तर ठीक क्रम से दिये थे। एक दाक्षिणात्य विद्वान नारायण मातण्ड भी उसी समय काशी में आए थे। जिनकी गणित शक्ति विलक्षण थी । भारतेन्दु जी ने इनकी गणित तथा अष्टावधान-कौशल देखने के लिए अपने ही गृह पर सभा कराई थी। यह बड़े बड़े हिसाब, जिन्हें हल करने में कई दिन लग जाते, पाँच पाँच मिनट के भीतर कर डालते थे। ऐसे हिसाब करते समय वह बराबर किसी से ताश, किसी से शतरंज और किसी से चौसर खेलते रहते थे तथा अन्य सज्जन उनसे बकवाद करते रहते या प्रश्नों की झड़ी लगाए रहते थे। उस पर भी मन ही मन हिसाब कर अभ्रांत फल निकाल लेते थे। भारतेन्दु जी ने इन्हें स्वयं बहुत कुछ दिया और काशिराज से भी दिलवाया था। इन्हीं के कारण काशी के अन्य धनाढ्यों से भी इन्हें बहुत पुरस्कार मिला था।