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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १२७—१३१

(२) इस प्रकार नामोद्दिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि अपने पद के अन्य कर्तव्यों पर पूर्ववर्तिता देकर उच्चतमन्यायालय की बैठकों में, उस समय, तथा उस कालावधि के लिये, जिसके लिये उस की उपस्थिति अपेक्षित है, उपस्थित हो, तथा जब वह इस प्रकार उपस्थित हो तब उस को उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीश के सब क्षेत्राधिकार, शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे तथा वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा।

सेवानिवृत्त न्याया-
धीशों की उच्च-
तमन्यायालयों
की बैठकों में उपस्थिति

१२८. (१) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायाधिपति किसी समय भी राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय के या फेडरलन्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है, उच्चतमन्यायालय में न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने की कर सकेगा, तथा इस प्रकार प्रार्थित प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के काल में, ऐसे भत्तों का, जैसे कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा निर्धारित करे, तथा उस न्यायालय के न्यायाधीश के सब क्षेत्राधिकार, शक्तियों और विशेषाधिकारों का, हक्क होगा किन्तु वह अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश न समझा जायेगा :

परन्तु जब तक पूर्वोक्त कोई व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने की सम्मति न दे तब तक इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली न समझी जायेगी।

उच्चतम न्यायालय
अभिलेख न्याया-
लय होगा

१२९. उच्चतमन्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा तथा उसे अपने अवमान के लिये दंड देने की शक्ति के सहित ऐसे न्यायालय की सब शक्तियाँ होंगी।

उच्चतमन्यायालय
का स्थान

१३०. उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में, जिन्हें भारत का मुख्य न्यायाधिपति राष्ट्रपति के अनुमोदन से समय समय पर नियुक्त करे, बैठेगा।

उच्चतमन्यायालय
का प्रारम्भिक
क्षेत्राधिकार

१३१. इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए—

(क) भारत सरकार तथा एक या अधिक राज्यों के बीच के, अथवा
(ख) एक ओर भारत सरकार और कोई राज्य या राज्यों तथा दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के, अथवा
(ग) दो या अधिक राज्यों के बीच के,

किसी विवाद में, यदि और जहाँ तक उस विवाद में ऐसा कोई प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है (चाहे तो विधि का चाहे तथ्य का) जिस पर किमी वैध अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर है तो और वहाँ तक, अन्य न्यायालयों का अपवर्जन कर के उच्चतमन्यायालय का आरम्भिक क्षेत्राधिकार होगा :

[१][परन्तु उक्त क्षेत्राधिकार का विस्तार उस विवाद पर न होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या अन्य तत्सम लिखत से, जो इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले की गयी या निष्पादित थी तथा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात्प्र वर्तन में है, या जो उपबन्ध करती है कि वैसे क्षेत्रा-धिकार का विस्तार ऐसे विवाद न होगा, पैदा हुआ है।]


  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा ५ द्वारा मूल परन्तुक के स्थान पर रखा गया।

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