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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १४३–१४५

उच्चतमन्यायालय
से परामर्श करने
की राष्ट्रपति की
शक्ति
१४३. (१) यदि किसी समय राष्ट्रपति को प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है, अथवा उसके उत्पन्न होने की सम्भावना है, जो इस प्रकार का और ऐसे सार्वजनिक महत्त्व का है कि उस पर उच्चतमन्यायालय की राय प्राप्त करना इष्टकर है, तो वह उस प्रश्न को उस न्यायालय को विचारार्थ सौंप सकेगा तथा वह न्यायालय ऐसी सुनवाई के पश्चात्, जैसी कि वह उचित समझे, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा।

(२) राष्ट्रपति, अनुच्छेद १३१ के परन्तुक [१]* * * में किसी बात के होते हुए भी उक्त परन्तुक[२] में वर्णित प्रकार के विवाद को उच्चतम न्यायालय को राय देने के लिये सौंप सकेगा तथ उच्चतम न्यायालय ऐसी सुनवाई के पश्चात्, जमी कि वह उचित समझे, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगा।

असैनिक तथा न्या-
यिक प्राधिकारी
उच्चतमन्यायालय
की सहायता में
कार्य करेंगे

१४४. भारत राज्य क्षेत्र के सभी असेनिक और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतमन्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे।

 

न्यायालय के नियम
आदि
१४५. (१) संसद् द्वारा बनाई हुई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उच्चतमन्यायालय, समय समय पर, राष्ट्रपति के अनुमोदन से न्यायालय की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया के साधारण विनियमन के लिये नियम बना सकेगा तथा जिनके अन्तर्गत—

(क) उस न्यायालय में वृत्ति करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम,
(ख) अपीलें सुनने के लिये प्रक्रिया के बारे में तथा अपीलों सम्बन्धी अन्य विषयों के, जिनके अन्तर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें न्यायालय में दाखिल की जानी हैं, बारे में नियम,
(ग) भाग ३ द्वारा दिये गये अधिकारों में से किसी की पूर्ति कराने के लिये उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम,
(घ) अनुच्छेद १३४ के खंड (१) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों के लिये जाने के बारे में नियम,
(ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाया गया कोई निर्णय अथवा दिया गया आदेश जिन शर्तों के अधीन रह कर पुनर्विलोकित किया जा सकेगा उनके बारे में, तथा ऐसे पुनर्विलोकन के लिये प्रक्रिया के बारे में, जिसके अन्तर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिये आवेदन पत्र न्यायालय में दाखिल किये जाने हैं, नियम,
(च) उस न्यायालय में किन्हीं ख़र्च के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों में के और तत्प्रासंगिक ख़र्च के बारे में, तथा उसमें-कार्यवाहियों के विषय में ली जाने वाली फीसों के बारे में, नियम,

  1. "के खंड (१)" शब्द संविधान, (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा "खंड" के स्थान पर रखा गया।