पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८
भारत का संविधान

 

भाग ६ राज्य—अनु॰ १५७—१६०

राज्यपाल नियुक्त
होने के लिये अंर्हता
१५७. कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त होने का पात्र न होगा जब तक कि वह भारत का नागरिक न हो तथा पैंतीस वर्ष की आयु पूरी न कर चुका हो। राज्यपाल के पद के
लिये शर्तें

१५८. (१) राज्यपाल न तो संसद् के किसी सदन् का, और न प्रथम अनुसूची में उल्लिखित किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन् का सदस्य होगा तथा यदि संसद् के किसी सदन का, अथवा ऐसे किसी राज्य के विधानमंडल के किमी सदन् का सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाये तो यह समझा जायेगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

(२) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण न करेगा।

(३) राज्यपाल को बिना किराया दिये, अपने पदावामों के उपयोग का हक्क होगा तथा उसको उन उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो संसद्वि-निर्मित विधि द्वारा निर्धारित किये जायें, तथा जब तक इस विषय में इस प्रकार उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं, हक्क होगा।

[१][(३(क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहां उस राज्यपाल को देय उपलब्धियां और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आबंटित किये जायेंगे जैसा कि राष्ट्रपति प्रदेश द्वारा निर्धारित करे।]

(४) राज्यपाल की उपलब्धियां और भने उसकी पद की अवधि में घटाये नहीं जायेंगे। राज्यपाल द्वारा
शपथ या प्रतिज्ञान

१५९. प्रत्येक राज्यपाल, तथा प्रत्येक व्यक्ति, जो राज्यपाल के कृत्यों का राज्यपाल निर्वहन करता है, अपने पद ग्रहण करने से पूर्व उस राज्य के सम्बन्ध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के, अथवा उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के प्राप्य अग्रतम न्यायाधीश के समक्ष निम्न रूप में शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा अर्थात्—

"मैं,....अमुक,ईश्वर की शपथ लेता हूं
सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं
कि में श्रद्धापूर्वक.....(राज्य का नाम) के राज्यपाल का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा।"

कुछ आकस्मिक-
ताओं में राज्य
पाल के कृत्यों का
निर्वहन

१६०. इस अध्याय में उपबन्ध न की हुई किसी आकस्मिकता में राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिये राष्ट्रपति जैसा उचित समझे वैसा उपबन्ध बना सकेगा।


  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६ धारा ७ द्वारा अन्तःस्थापित किया गया।