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पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/१६७

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भारत का संविधान

 

भाग ६—राज्य—अनु॰ १७०–१७१

[](२) खंड (१) के प्रयोजनों के लिये प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति में विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही होगा।

व्याख्या—इस खंड में "जनसंख्या" पद से ऐसी अन्तिम पूर्वगत जनगणना में, जिसके तत्सम्बन्धी आंकड़े प्रकाशित हो चुके हैं, निश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है।

(३) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुनः समायोजन किया जायेगा जैसा कि संसद् विधि द्वारा निर्धारित करे;

परन्तु ऐसे पुनः समायोजन से विधान-सभा में के प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव न पड़ेगा, जब तक कि उस समय वर्तमान विधानसभा का विघटन न हो जाये।] विधान परिषदों की रचना

१७१. (१) विधान-परिषद् वाले राज्य की विधान-परिषद् के सदस्यों की समस्त संख्या उस राज्य की विधान-सभा के सदस्यों की समस्त संख्या की एक [][तिहाई] से अधिक न होगी :

परन्तु किसी अवस्था में भी किसी राज्य की विधान-परिषद् के सदस्यों की समस्त संख्या चालीस से कम न होगी।

(२) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध नहीं करे तब तक किसी राज्य की विधान-परिषद् की रचना खंड (३) में उपबन्धित रीति से होगी।

(३) किसी राज्य की विधान-परिषद् के सदस्यों की समस्त संख्या का—

(क) यथाशक्य तृतीयांश उस राज्य में की नगरपालिकाओं, जिला-मंडलियों तथा अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के, जैसे कि संसद् विधि द्वारा उल्लिखित करे, सदस्यों से मिल कर बने निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा;
  1. टिप्पणी—संविधान (कठिनाइ निवारण) आदेश संख्या ८ की कंडिका २ में निम्नलिखित उपबन्ध किया गया है—
    संविधान की षष्ठ अनुसूची की कंडिका २० से संलग्न सारणी के भाग (ख) या उसके किन्हीं भागों में उल्लिखित आदिमजाति क्षेत्रों का जिस कालावधि के लिए उक्त अनुसूची की कंडिका १८ की उपकंडिका (२) के बल पर राष्ट्रपति द्वारा प्रशासन किया जाता है उसके दौरान में भारत का संविधान निम्नलिखित अनुकूलनों के अध्यधीन प्रभावी होगा, अर्थात्—
    अनुच्छेद १७० के खंड (२) में "यथासाध्य एक ही होगा" शब्दों के पश्चात् निम्नलिखित परन्तुक अन्तःस्थापित कर दिया जाएगा, अर्थात—
    "परन्तु आसाम राज्य जिन निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाए उनमें वे आदिमजाति क्षेत्र समाविष्ट न होंगे जो कि षष्ठ अनुसूची की कंडिका २० से संलग्न सारणी के भाग (ख) में उल्लिखित हैं।"
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १० द्वारा "चौथाई" के स्थान पर रखा गया।