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भारत का संविधान

 

भाग ६—राज्य—अनु॰ १७१–१७२

(ख) यथाशक्य द्वादशांश उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से मिल कर बने हुए निर्वाचक-मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा, जो भारत-राज्य क्षेत्र में के किसी विश्व-विद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं अथवा, जो कम से कम तीन वर्ष से ऐसी अंर्हताओं को धारण किये हुए हैं जो संसद् निर्मित किसी विधि के द्वारा या अधीन वैसे किसी विश्व विद्यालय के स्नातक की अंर्हताओं के तुल्य विहित की गई हों;
(ग) यथाशक्य द्वादशांश ऐसे व्यक्तियों से मिल कर बने निर्वाचक -मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं से अनिम्न स्तर की ऐसी शिक्षा संस्थाओं में पढ़ाने के काम में कम से कम तीन वर्ष से लगे हुए हैं जैसी कि संसद्वि-निर्मित विधि के द्वारा या अधीन विहित की जायें;
(घ) यथाशक्य तृतीयांश राज्य की विधान-सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होगा जो सभा के सदस्य नहीं हैं;
(ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा उस रीति से नाम-निर्देशित होंगे जो कि इस अनुच्छेद के खंड (५) में उपबन्धित हैं।

(४) खंड (३) के उपखंड (क), (ख) और (ग) के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में चुने जायेंगे, जैसे कि संसद्-निर्मित किसी विधि के अधीन या द्वारा विहित किये जायें तथा उक्त खंड उपखंडों के, और उपखंड (घ) के अधीन होने वाले निर्वाचन अनुपाती-प्रतिनिधित्व-पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे।

(५) खंड (३) के उपखंड (ङ) के अधीन राज्यपाल द्वारा नाम निर्देशित किये जाने वाले सदस्य ऐसे होंगे जिन्हें निम्न प्रकार के विषयों के बारे में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात्—

साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आन्दोलन और सामाजिक सेवा।

राज्यों के विधान-मंडलों की अवधि १७२. (१) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान-सभा, यदि पहिले ही विघटित न कर दी जाये तो अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियुक्त तारीख से पांच वर्ष तक चालू रहेगी और इस से अधिक नहीं तथा पांच वर्ष की उक्त कालावधि की समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा :

परन्तु उक्त कालावधि को जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवर्त्तन में है, संसद् विधि द्वारा किसी कालावधि के लिये बढ़ा सकेगी, जो एक बार एक वर्ष से अधिक न होगी तथा किसी अवस्था में भी उद्घोषणा के प्रवर्त्तन का अन्त हो जाने के पश्चात् छः मास की कालावधि से अधिक विस्तृत न होगी।

(२) राज्य की विधान परिषद् का विघटन न होगा, किन्तु उस के सदस्यों में से यथाशक्ति निकटतम एक तिहाई संसद् निर्मित विधि द्वारा बनाये गये तद्विषयक उपबन्धों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथासम्भव शीघ्र निवृत्त हो जायेंगे।