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भारत का संविधान

 

भाग ६—राज्य अनु॰ १७३—१७६

राज्य के विधान-
मंडल की सदस्य-
ता के लिये अर्हता
१७३. कोई व्यक्ति किसी राज्य के विधानमंडल में के किसी स्थान की पूर्ति के लिये चुने जाने के लिये अर्ह तब तक न होगा जब तक कि—

(क) वह भारत का नागरिक न हो;
(ख) विधान-सभा के स्थान के लिये कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का, तथा विधान परिषद् के स्थान के लिये कम से कम तीस वर्ष की आयु का, न हो; तथा
(ग) ऐसी अन्य अर्हतायें न रखता हो जो कि इस बारे में संसद् निर्मित किसी विधि के द्वारा या अधीन विहित की जायें।

राज्य के विधान-
मंडल के सत्ता,
सत्तावसान और
विघटन
[१][१७४. (१) राज्यपाल, समय समय पर, राज्य के विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय तथा स्थान पर, जैसा वह उचित समझे, अधिवेशन के लिये आहूत करेगा किन्तु उस के एक सत्ता की अन्तिम बैठक और आगामी सत्ता की प्रथम बैठक के लिये नियुक्त तारीख के बीच छः मास का अन्तर न होगा। (२) राज्यपाल समय समय पर—

(क) सदन या किसी सदन का सत्तावसान कर सकेगा,
(ख) विधान-सभा का विघटन कर सकेगा।]

सदन या सदनों
को सम्बोधन
करने और संदेश
भेजने का राज्य-
पाल का अधिकार
१७५. (१) विधान-सभा को, अथवा राज्य में विधान परिषद् होने की अवस्था में उस राज्य के विधानमंडल के किसी एक सदन को, अथवा साथ समवेत दोनों सदनों को, राज्यपाल सम्बोधित कर सकेगा तथा इस प्रयोजन के लिये सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।

(२) राज्यपाल राज्य के विधानमंडल में उस समय लम्बित किसी विधेयक विषयक अथवा अन्य विषयक सन्देश उस राज्य के विधानमंडल के सदन अथवा सदनों को भेज सकेगा तथा जिस सदन को कोई सन्देश इस प्रकार भेजा गया हो वह सदन उस संदेश द्वारा अपेक्षित विचारणीय विषय पर यथासुविधा शीघ्रता से विचार करेगा। प्रत्येक सत्तारम्भ
में राज्यपाल का विशेष अभि-
भाषण

१७६. (१) [२][विधान-सभा के लिये प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्ता के आरम्भ में तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्ता के आरम्भ में] विधान-सभा को, अथवा राज्य में विधान परिषद् होने की अवस्था में साथ समवेत हुए दोनों सदनों को, राज्यपाल सम्बोधन करेगा तथा आह्वान का कारण विधानमंडल को बतायेगा।

(२) सदन या किसी भी सदन की प्रक्रिया के विनियामक नियमों से ऐसे

अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के हेतु समय रखने के लिये[३]* * *उपबन्ध किया जायेगा।


  1. संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१, धाग ८ द्वारा मूल अनुच्छेद के स्थान पर रखा गया।
  2. उपरोक्त की ही धारा ९ द्वारा "प्रत्येक सत्ता के आरम्भ में" के स्थान पर रखे गये।
  3. "तथा सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को पूर्ववतिता देने के लिये" शब्द संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१, धारा ९ द्वारा लुप्त कर दिये गये।