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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ १८९—१९०

सदनों में मतदान,
रिक्तताओं के
होते हुए भी सदनों
की कार्य करने की
शक्ति तथा गणपूर्ति
१८९. (१) इस संविधान में अन्यथा उपबन्धित अवस्था को छोड़ कर किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन की किसी बैठक में सब प्रश्नों का निर्धारण, अध्यक्ष या सभापति या उस के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़ कर, उपस्थित तथा मत देने वाले अन्य सदस्यों के बहुमत से किया जायेगा।

अध्यक्ष अथवा सभापति या उस के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमतः मत न देगा, पर मत साम्य की अवस्था में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

(२) सदस्यता में कोई रिक्तता होने पर भी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन को कार्य करने की शक्ति होगी, तथा यदि बाद में यह पता चले कि कोई व्यक्ति जिसे ऐसा करने का हक्क न था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा, उस ने मत दिया अथवा अन्य प्रकार से भाग लिया, तो भी राज्य के विधानमंडल में की कार्यवाही मान्य होगी।

(३) जब तक राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा अन्यथा उपबन्धित न करे तब तक राज्य के विधानमंडल के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिये गणपूर्ति दस सदस्य अथवा सदन के समस्त सदस्यों की सम्पूर्ण संख्या का दशांश, इस में से जो भी अधिक हो, होगी।

(४) यदि राज्य की विधान-सभा अथवा विधान-परिषद् के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति न रहे तो अध्यक्ष या सभापति अथवा उस के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का कर्तव्य होगा कि वह या तो सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिये निलम्बित कर दे जब तक कि गणपूर्ति न हो जाये।

सदस्यों की अनर्हताएं

स्थानों की रिक्तता१९०. (१) कोई व्यक्ति राज्य के विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य न होगा तथा जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य निर्वाचित हुआ है उस के एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिये उस राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा उपबन्ध बनायेगा।

(२) कोई व्यक्ति प्रथम अनुसूची में उल्लिखित दो या अधिक राज्यों के विधानमंडलों का सदस्य न होगा तथा यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक ऐसे राज्यों के विधानमंडलों का सदस्य चुन लिया जाये तो ऐसी कालावधि की समाप्ति के पश्चात्, जो कि राष्ट्रपति द्वारा बनाये गये नियमों में उल्लिखित हो, ऐसे सब राज्यों के विधानमंडलों में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जायेगा यदि उस ने एक राज्य के अतिरिक्त अन्य राज्यों में के विधानमंडलों के अपने स्थान को पहिले ही त्याग न दिया हो।

(३) यदि राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य—

(क) अनुच्छेद १९१ के खंड (१) में वर्णित अनर्हताओं में से किसी का भागी हो जाता है, अथवा
(ख) यथास्थिति अध्यक्ष या सभापति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है,

तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जायेगा।

(४) यदि किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य साठ दिन की कालावधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उस के सब अधिवेशनों में अनुपस्थित रहे तो सदन उस के स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा :

परन्तु साठ दिन की उक्त कालावधि की संगणना में किसी ऐसी कालावधि को सम्मिलित न किया जायेगा जिस में सदन सत्तावसित अथवा निरन्तर चार से अधिक दिनों के लिये स्थगित रहा है।