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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २०६—२०८

(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग न हो ऐसा आपवादिक अनुदान करने की,

शक्ति होगी तथा उक्त अनुदान जिन प्रयोजनों के लिये किये गये हैं उनके लिये राज्य की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की शक्ति राज्य के विधानमंडल को होगी।

(२) खंड (१) के अधीन किये जाने वाले किसी अनुदान तथा उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली किसी विधि के सम्बन्ध में अनुच्छेद २०३ और २०४ के उपबन्ध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे कि वे वार्षिक-वित्त-विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में किसी अनुदान के करने के तथा राज्य की संचित निधि में ऐसे व्यय की पूर्ति के लिये धनों का विनियोग प्राधिकृत करने के लिये बनाई जाने वाली विधि के सम्बन्ध में प्रभावी हैं।

वित्तविधेयकों के
लिये उपबन्ध
२०७. (१) अनुच्छेद १९९ के खंड (१) के (क) से (च) तक उपखंडों में उल्लिखित विषयों में से किसी के लिये उपबन्ध करने वाला विधेयक या संशोधन राज्यपाल की सिपारिश के बिना पुरःस्थापित या प्रस्तावित न किया जायेगा तथा ऐसे उपबन्ध करने वाला विधेयक विधान-परिषद् में पुरःस्थापित न किया जायेगा :

परन्तु किसी कर के घटाने अथवा उत्सादन के लिये उपबन्ध बनाने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिये इस खंड के अधीन किसी सिपारिश की अपेक्षा न होगी।

(२) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिये उपबन्ध करने वाला केवल इस कारण से न समझा जायेगा कि वह जुर्माने या अन्य अर्थ-दण्ड के आरोपण का, अथवा अनुज्ञप्तियों के लिये फीस की, या की हुई सेवाओं के लिये फीस की, अभियाचना का या देने का, उपबन्ध करता है, अथवा इस कारण से कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर के आरोपण, उत्सादन, परिहार, बदलने या विनियमन का उपबन्ध करता है।

(३) जिस विधेयक के अधिनियमित किये जाने और प्रवर्तन में लाये जाने पर राज्य की संचित निधि से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक राज्य के विधान मंडल के किसी सदन द्वारा तब तक पारित न किया जायेगा जबतक कि ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिये उस सदन से राज्यपाल ने सिपारिश न की हो।

साधारणतया प्रक्रिया

प्रक्रिया के नियम२०८. (१) इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधानमंडल का कोई सदन अपनी प्रक्रिया के तथा अपने कार्य-संचालन के विनियमन के लिये नियम बना सकेगा।

(२) जब तक खंड (१) के अधीन नियम नहीं बनाये जाते तब तक इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले, तत्स्थानी राज्य के प्रान्तीय विधानमंडल के सम्बन्ध में, जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे वे, ऐसे रूपभेदों और अनुकूलनों के साथ जिन्हें यथास्थिति विधानसभा का अध्यक्ष अथवा विधान-परिषद् का सभापति करे, उस राज्य के विधानमंडल के सम्बन्ध में प्रभावी होंगे।

(३) विधान-परिषद् वाले राज्य में विधान-सभा के अध्यक्ष तथा विधान-परिषद् के सभापति से परामर्श करने के पश्चात् राज्यपाल, उनमें परस्पर संचार सम्बन्धी प्रक्रिया के नियम बना सकेगा।