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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २१३—२१४

(ख) वैसे ही उपबन्ध अन्तर्विष्ट रखने वाले विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित करना वह आवश्यक समझता; अथवा
(ग) वैसे ही उपबन्ध अन्तर्विष्ट रखने वाले राज्य के विधानमंडल का अधिनियम इस संविधान के अधीन तब तक अमान्य होता जब तक कि राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त न हो चुकी होती।

(२) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो राज्यपाल द्वारा अनुमत राज्य के विधानमंडल के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश—

(क) राज्य की विधानसभा के समक्ष, तथा जहां राज्य में विधान-परिषद् है वहां दोनों सदनों के समक्ष रखा जायेगा तथा विधानमंडल के पुनः समवेत होने से छः सप्ताह की समाप्ति पर, अथवा यदि उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व उसके निरनुमोदन का संकल्प विधान-सभा से पारित, और यदि विधान-परिषद् है तो उससे स्वीकृत हो जाता है तो यथास्थिति संकल्प पारण होने पर, अथवा परिषद् द्वारा संकल्प स्वीकृत होने पर, प्रवर्तन में न रहेगा; तथा
(ख) राज्यपाल द्वारा किसी समय भी लौटा लिया जा सकेगा।

व्याख्या—जब विधान परिषद् वाले राज्य के विधानमंडल के सदन भिन्न-भिन्न तारीखों में पुनः समवेत होने के लिये आहूत किये जाते हैं तो इस खंड के प्रयोजनों के लिये छः सप्ताह की कालावधि की गणना उन तारीखों में से पिछली तारीख से की जायेगी।

(३) यदि, और जिस मात्रा तक, इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबन्ध करता है जो विधानमंडल द्वारा अधिनियमित तथा राज्यपाल द्वारा अनुमत अधिनियम के रूप में अमान्य होता तो वह अध्यादेश उस मात्रा तक शून्य होगा :

परन्तु राज्य के विधानमंडल के ऐसे अधिनियम के, जो समवर्ती सूची में प्रगणित किसी विषय के बारे में संसद् के किसी विधि के विरुद्ध है, प्रभाव को दिखाने वाले इस संविधान के उपबन्धों के प्रयोजनों के लिये कोई अध्यादेश, जो राष्ट्रपति के अनुदेशों के अनुसरण में इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित किया गया है, राज्य के विधानमंडल का ऐसा अधिनियम समझा जायेगा जो राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित किया गया था तथा उसके द्वारा अनुमत हो चुका है।

अध्याय ५—राज्यों के उच्चन्यायालय

राज्यों के लिये
उच्चन्यायालय
२१४. [१]* * * प्रत्येक राज्य के लिये एक उच्च न्यायालय होगा।

[१]