पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८१
भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २२२—२२५

एक उच्चन्यायालय
से दूसरे को
किसी न्यायाधीश
का स्थानान्तरण
२२२. राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधिपति से परामर्श कर के [१]* * * एक उच्चन्यायालय से किसी दूसरे उच्चन्यायालय को किसी न्यायाधीश का स्थानान्तरण कर सकेगा।

[२]******

 

कार्यकारी मुख्य
न्यायाधिपति की
नियुक्ति
२२३. जब किसी उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति का पद रिक्त हो अथवा जब मुख्य न्यायाधिपति, अनुपस्थिति या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक, जिसे राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

अपर और
कार्यकारी
न्यायाधीशों की
नियुक्ति
[३][२२४. (१) यदि किसी उच्चन्यायालय के कार्य में किसी अस्थायी वृद्धि के कारण या उसमें काम की बकाया के कारण राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि उस न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को तत्समय के लिये बढ़ा देना चाहिये तो राष्ट्रपति सम्यक‍्‍रूपेण अर्ह व्यक्तियों को दो वर्ष से अनधिक की ऐसी कालावधि के लिये, जैसी कि वह उल्लिखित करे, उस न्यायालय के अपर न्यायाधीश होने के लिये नियुक्त कर सकेगा।

(२) जब किसी उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न कोई न्यायाधीश अनुपस्थिति के कारण से या किसी अन्य कारण के लिये अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने के लिये अयोग्य है या मुख्य न्यायाधिपति के रूप में अस्थायीरूपेण कार्य करने के लिये नियुक्त किया जाता है तब राष्ट्रपति सम्यक‍्‍रूपेण अर्ह किसी व्यक्ति को तब तक के लिये उस न्यायालय के एक न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये नियुक्त कर सकेगा जब तक कि स्थायी न्यायाधीश अपने कर्तव्यों को पुनर्गृहीत नहीं कर लेता।

(३) उच्चन्यायालय के अपर या कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कोई व्यक्ति साठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात् पद धारण न करेगा।]

वर्तमान
उच्चन्यायालयों के
क्षेत्राधिकार
२२५. इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हये, तथा इस संविधान द्वारा विधानमंडल को प्रदत्त शक्तियों के आधार पर समुचित विधानमंडल द्वारा बनाई हुई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुये, किसी वर्तमान उच्चन्यायालय का क्षेत्राधिकार तथा उस में प्रशासित विधि तथा उस न्यायालय में न्याया-प्रशासन के संबंध में उस के न्यायाधीशों की अपनी अपनी शक्तियां, जिन के अन्तर्गत न्यायालय के नियम बनाने की तथा उस न्यायालय की बैठकों और उस के सदस्यों के अकेले या खंड-न्यायालयों में बैठने का विनियमन करने की कोई शक्ति भी है, वैसी ही रहेंगी, जैसी इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले थीं;

परन्तु राजस्व संबंधी, अथवा उस के संगृहीत करने में आदेशित अथवा किये हुए किसी कार्य संबंधी विषय में उच्चन्यायालयों में से किसी के आरम्भिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग, जिस किसी निर्बन्धन के अधीन इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले था, वह निर्बन्धन ऐसे क्षेत्राधिकार के प्रयोग पर आगे लागू न होगा।

14—Law/57


  1. "भारत राज्य-क्षेत्र में के" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १४ द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  2. खंड (२) उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिया गया।
  3. संविधान (सप्तम संसोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १५ द्वारा मूल अनुच्छेद २२४ के स्थान पर रखा गया।