पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८२
भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २२६—२२८

कुछ लेखों के
निकालने के लिये
उच्चन्यायालयों
की शक्ति
२२६. (१) अनुच्छेद ३२ में किसी बात के होते हुये भी प्रत्येक उच्चन्यायालय को उन क्षेत्रों में सर्वत्र, जिन के संबंध में वह अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है, इस संविधान के भाग (३) द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये तथा किसी अन्य प्रयोजन के लिये उन राज्य-क्षेत्रों में के किसी व्यक्ति या प्राधिकारी के प्रति, या समुचित मामलों में किसी सरकार को ऐसे निदेश या आदेश या लेख, जिन के अन्तर्गत बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी है, अथवा उन में से किसी को निकालने की शक्ति होगी।

(२) खंड (१) द्वारा उच्चन्यायालय को प्रदत्त शक्ति से इस संविधान के अनुच्छेद ३२ के खंड (२) द्वारा उच्चतमन्यायालय को प्रदत्त शक्ति का अल्पीकरण न होगा।

सब न्यायालयों के
अधीक्षण की
उच्चन्यायालय की
शक्ति
२२७. (१) प्रत्येक उच्चन्यायालय उन राज्य-क्षेत्रों में सर्वत्र, जिन के संबंध में वह क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है, सब न्यायालयों और न्यायाधिकरणों का अधीक्षण करेगा।

(२) पूर्वगामी उपबन्ध की व्यापकता पर बिना प्रतिकूल प्रभाव हुए उच्चन्यायालय—

(क) ऐसे न्यायालयों से विवरणी मंगा सकेगा;
(ख) ऐसे न्यायालयों की कार्य-प्रणाली और कार्यवाहियों के विनियमन के हेतु साधारण नियम बना और निकाल सकेगा तथा प्रपत्रों को विहित कर सकेगा; तथा
(ग) किन्हीं ऐसे न्यायालयों के पदाधिकारियों द्वारा रखी जाने वाली पुस्तकों, प्रविष्टियों और लेखाओं के प्रपत्रों को विहित कर सकेगा।

(३) उच्चन्यायालय उन फीसों की सारणियां भी स्थिर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालयों के शेरीफ को तथा समस्त लिपिकों को और पदाधिकारियों को तथा इन में वृत्ति करने वाले न्यायवादियों, अधिवक्ताओं, और वकीलों को मिल सकेंगी :

परन्तु खंड (२) या खंड (३) के अधीन बनाय हुये कोई नियम अथवा विहित कोई प्रपत्र अथवा स्थिरीभूत कोई सारणी किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबन्धों से असंगत न होगी, तथा इन के लिये राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन की अपेक्षा होगी।

(४) अनुच्छेद की कोई बात उच्चन्यायालय को सशस्त्र बलों संबंधी किसी विधि के द्वारा या अधीन गठित किसी न्यायालय या न्यायाधिकरण पर अधीक्षण की शक्तियां देने वाली न समझी जायेगी।

विशेष मामलों का
उच्चन्यायालय को
हस्तान्तरण
२२८. यदि उच्चन्यायालय का समाधान हो जाये कि उस के अधीन न्यायालय में लंबित किसी मामले में इस संविधान के निर्वचन का कोई सारवान विधि-प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है जिस का निर्धारित होना मामले को निबटाने के लिये आवश्यक है तो वह उस मामले को अपने पास मंगा लेगा तथा–

(क) या तो मामले को स्वयं निबटा सकेगा; या
(ख) उक्त विधि-प्रश्न का निर्धारण कर सकेगा तथा ऐसे प्रश्न पर अपने निर्णय की प्रतिलिपि सहित उस मामले को उस न्यायालय को, जिस से मामला इस प्रकार मंगा लिया गया है, लौटा सकेगा तथा उसके प्राप्त होने पर उक्त न्यायालय ऐसे निर्णय का अनुसरण करते हुये उस मामले को निबटाने के लिये आगे कार्यवाही करेगा।