भाग ६—राज्य—अनु॰ २२९—२३१
उच्चन्यायालयों के
पदाधिकारी और
सेवक और व्यय२२९. (१) उच्चन्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां न्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति अथवा उस के द्वारा निर्दिष्ट उस न्यायालय का अन्य न्यायाधीश या पदाधिकारी करेगा :
परन्तु उस राज्य का राज्यपाल [१]* * * नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं अवस्थाओं में, जैसी कि नियम में उल्लिखित हों, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहिले ही न्यायालय में लगा हुआ नहीं है, न्यायालय से संबंधित किसी पद पर राज्य लोकसेवा-आयोग से परामर्श किये बिना नियुक्त न किया जायेगा।
(२) राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुये उच्चन्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जैसी कि उस न्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति अथवा उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या पदाधिकारी, जिसे मुख्य न्यायाधिपति ने उस प्रयोजन के लिये नियम बनाने को प्राधिकृत किया है, नियमों द्वारा विहित करे :
परन्तु इस खंड के अधीन बनाये गये नियमों के लिये, जहां तक कि वे वेतनों भत्तों, छुट्टी या निवृत्ति-वेतनों से सम्बद्ध हैं, उस राज्य के राज्यपाल के [१]* * * अनुमोदन की अपेक्षा होगी
(३) उच्चन्यायालय के प्रशासनीय व्यय, जिन के अन्तर्गत उस न्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों को, या के बारे में, दिये जाने वाले सब वेतन, भत्ते और निवृत्ति-वेतन भी हैं, राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे तथा उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धन उस निधि का भाग होंगी।
उच्चन्यायालयों
के क्षेत्राधिकार का
संघ राज्य-क्षेत्रों
में विस्तार[२]२३०. (१) संसद् विधि द्वारा किसी उच्चन्यायालय के क्षेत्राधिकार का विस्तार अथवा किसी उच्चन्यायालय के क्षेत्राधिकार का अपवर्जन किसी संघ राज्य-क्षेत्र में या से कर सकेगी।
(२) जहां किसी राज्य का कोई उच्चन्यायालय किसी संघ राज्य-क्षेत्र के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है वहां—
- (क) इस संविधान की किसी बात का यह अर्थ न किया जायेगा कि वह उस राज्य के विधानमंडल को उस क्षेत्राधिकार के वर्धन, निर्बन्धन या उत्सादन की शक्ति प्रदान करती है, और
- (ख) अनुच्छेद २२७ में राज्यपाल के प्रति जो निर्देश हैं उनका अर्थ उस राज्यक्षेत्र में के अधीनस्थ न्यायालयों के लिये किन्हीं नियमों, प्रपत्रों, या सारणियों के संबंध में यह लगाया जायेगा कि वह राष्ट्रपति के प्रति निर्देश है।
दो या अधिक राज्यों
के लिए एक उच्च
न्यायालय की स्थापना२३१. (१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुये भी संसद् विधि द्वारा दो या अधिक राज्यों के लिये अथवा दो या अधिक राज्यों और एक संघ राज्य-क्षेत्र के लिये एक उच्चन्यायालय स्थापित कर सकेगी।
- ↑ १.० १.१ "जिसमें उच्चन्यायालय का मुख्य स्थान है" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
- ↑ संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १६ द्वारा मूल अनुच्छेद २३०, २३१ और २३२ के स्थान पर रखे गये।