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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २३२—२३५

(२) किसी ऐसे उच्चन्यायालय के संबंध में,—

(क) उस निर्देश का अर्थ, जो कि अनुच्छेद २१७ में उस राज्य के राज्यपाल के प्रति है, यह लगाया जायेगा कि वह उन सब राज्यों के राज्यपालों के प्रति निर्देश है जिनके संबंध में वह उच्चन्यायालय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है,
(ख) उस निर्देश का अर्थ, जो अनच्छेद २२७ में राज्यपाल के प्रति है, अधीनस्थ न्यायालयों के लिये किन्हीं नियमों, प्रपत्रों या सारणियों के संबंध में यह लगाया जायेगा कि वह उस राज्य के राज्यपाल के प्रति है, जिसमें वे अधीनस्थ न्यायालय अवस्थित है; और
(ग) उन निर्देशों का अर्थ जो कि अनुच्छेद २१९ और २२९ में राज्य के प्रति हैं यह लगाया जायेगा कि वे उस राज्य के प्रति हैं जिसमें उस उच्चन्यायालय का मुख्य स्थान है;

परन्तु यदि ऐसा मुख्य स्थान किसी संघ राज्य-क्षेत्र में है तो अनुच्छेद २१९ और २२९ में राज्य के राज्यपाल, लोकसेवा-आयोग, विधानमंडल और संचित निधि के प्रति जो निर्देश हैं उनका यह अर्थ लगाया जायेगा कि वे क्रमशः राष्ट्रपति, संघ लोकसेवाआयोग, संसद् और भारत की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं।]

अध्याय ६.—अधीन न्यायालय

जिला-न्यायाधीशों
की नियुक्ति
२३३. (१) किसी राज्य में जिला-न्यायाधीश नियुक्त होने वाले व्यक्तियों की नियुक्ति तथा उन की पद-स्थापना और पदोन्नति ऐसे राज्य के संबंध में क्षेत्राधिकार प्रयोग करने वाले उच्चन्यायालय से परामर्श कर के राज्य का राज्यपाल करेगा।

(२) कोई व्यक्ति, जो संघ की या राज्य की सेवा में पहिले से ही नहीं लगा हुआ है, जिला-न्यायाधीश होने के लिये केवल तभी पात्र होगा जब कि वह सात से अन्यून वर्षों तक अधिवक्ता या वकील रह चुका है तथा उसकी नियुक्ति के लिये उच्चन्यायालय ने सिफारिश की है।

न्यायिक सेवा में
जिला न्यायाधीशों
से अन्य व्यक्तियों
की भर्ती
२३४. जिला-न्यायाधीशों से अन्य व्यक्तियों की राज्य की न्यायिक सेवा में नियुक्ति राज्यपाल द्वारा, राज्य-लोकसेवा-आयोग तथा ऐसे राज्य के संबंध में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने वाले उच्चन्यायालय से परामर्श के पश्चात् उस के द्वारा इस लिये बनाये गये नियमों के अनुसार की जायेगी।

 

अधीन न्यायालयों
पर नियंत्रण
२३५. जिला-न्यायाधीश के पद से निचले किसी पद को धारण करने वाले राज्य की न्यायिक सेवा के व्यक्तियों की पद-स्थापना, पदोन्नति और उन को छुट्टी देने के सहित जिला-न्यायालयों तथा उन के अधीन न्यायालयों का नियंत्रण उच्चन्यायालयों में निहित होगा, किन्तु इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ नहीं किया जायेगा कि मानों वह ऐसे किसी व्यक्ति से उस अपील के अधिकार को छीनती है जो कि उस की सेवा की शर्तों का विनियमन करने वाली विधि के अधीन उसे प्राप्त है अथवा उच्चन्यायालय को अधिकार देती है कि वह उस की सेवा की ऐसी विधि के अधीन विहित शर्तों के अनुसरण से अन्यथा उस से व्यवहार करे।