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भारत का संविधान


भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अनु॰—२४८—२५१

अवशिष्ट विधान
शक्तियां
[१]२४८. (१) संसद् को ऐसे किसी विषय के बारे में, जो "समवर्ती-सूची" अथवा "राज्य-सूची" में प्रगणित नहीं है, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।

(२) ऐसी शक्ति के अन्तर्गत ऐसे करों के, जो उन सूचियों में से किसी में वर्णित नहीं है, आरोपण करने के लिये कोई विधि बनाने की शक्ति भी है।

राष्ट्रीय हित में
राज्य-सूची में के
विषय के बारे में
विधि बनाने की
संसद की शक्ति
[१]२४९. (१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, यदि राज्य-सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की दो-तिहाई से अन्यून संख्या द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित किया है कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक तथा इष्टकर है कि संसद् राज्य-सूची में प्रगणित और उस संकल्प में उल्लिखित किसी विषय के बारे में विधि बनाये तो जब तक वह संकल्प प्रवृत्त है संसद् के लिये उस विषय के बारे में भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र अथवा उस के किसी भाग के लिये विधि बनाना विधि-संगत होगा।

(२) खंड (१) के अधीन पारित संकल्प एक वर्ष से अनधिक ऐसी कालावधि के लिये प्रवृत्त रहेगा जैसी कि उस में उल्लिखित हो :

परन्तु यदि, और जितनी बार, किसी ऐसे संकल्प को प्रवृत्त बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प खंड (१) में उपबन्धित रीति से पारित हो जाये तो ऐसा संकल्प उस तारीख से आगे, जिस को कि वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवृत्त न रहता, एक वर्ष की और कालावधि तक प्रवृत्त रहेगा।

(३) संसद् द्वारा निर्मित कोई विधि, जिसे संसद् खंड (१) के अधीन संकल्प के पारण के अभाव में बनाने में सक्षम न होती, संकल्प के प्रवृत्त न रहने से छ:मास की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के अतिरिक्त प्रभावी न होगी जो उक्त कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई हैं।

यदि आपात की
उद्घोषणा प्रवर्तन
में हो तो राज्य-
सूची में के विषयों
के बारे में विधि
बनाने की संसद
की शक्ति
[२]२५०. (१) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी संसद् को, जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, भारत के सम्पूर्ण राज्य-क्षेत्र के अथवा उस के किसी भाग के लिये राज्य-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में विधि बनाने की शक्ति होगी।

(२) संसद् द्वारा निर्मित विधि, जिसे संसद् आपात की उद्घोषणा के अभाव में बनाने में सक्षम न होती, उद्घोषणा के प्रवर्तन की समाप्ति के पश्चात छ: मास की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उन सब बातों के अतिरिक्त प्रवर्तनहीन होगी जो उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई हैं।

 

  1. १.० १.१ अनुच्छेद २४८ और २४९ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होंगे।,
  2. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५० में "राज्य-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी के बारे में" शब्दों के स्थान पर "संघ-सूची में प्रगणित न किये गये विषयों के बारे में भी" शब्द रख दिये जाएंगे।