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पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२३१

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भारत का संविधान


भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध
अनु॰—२५४—२५५

संसद् द्वारा निर्मित
विधियों और
राज्यों के विधान-
मंडलों द्वारा
निर्मित विधियों में
असंगति
[]२५४. (१) यदि किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि का कोई उपबन्ध संसद् द्वारा निर्मित विधि के, जिसे संसद् अधिनियमित करने के लिये सक्षम है, किसी उपबन्ध, अथवा समवर्ती सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में वर्तमान विधि के, किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो खंड (२) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यथास्थिति संसद् द्वारा निर्मित विधि, चाहे वह ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि के पहिले या पीछे पारित हुई हो या वर्तमान विधि अभिभावी होगी, तथा उस राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।

(२) जहां []*** राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मित विधि में, जो समवर्ती सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में है, कोई ऐसा उपबन्ध अन्तर्विष्ट हो जो संसद् द्वारा पहिले निर्मित की गई विधि के, अथवा उस विषय के बारे में किसी वर्तमान विधि के विरुद्ध है तो ऐसे राज्य के विधानमंडल द्वारा उस प्रकार निर्मित विधि उस राज्य में अभिभावी होगी यदि उस को राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित किया गया है और उस पर उस की अनुमति मिल चुकी है :

परन्तु इस खंड की कोई बात संसद् को, किसी समय उसी विषय के संबंध में कोई विधि, जिस के अन्तर्गत ऐसी विधि भी है जो राज्य के विधानमंडल द्वारा इस प्रकार निर्मित विधि का परिवर्धन, संशोधन, परिवर्तन या निरसन करती है, अधिनियमित करने से न रोकेगी।

सिपारिशों और
पूर्व मंजूरी की
अपेक्षाओं को
केवल प्रक्रिया का
विषय मानना
[]२५५. यदि संसद् के, अथवा []* * * किसी राज्य के विधानमंडल के किसी अधिनियम को–

(क) जहां राज्यपाल की सिपारिश अपेक्षित थी वहां राज्यपाल या राष्ट्रपति ने,
(ख) जहां राजप्रमुख की सिपारिश अपेक्षित थी वहां राजप्रमुख या राष्ट्रपति ने,
(ग) जहां राष्ट्रपति की सिपारिश या पूर्व मंजूरी अपेक्षित थी वहां राष्ट्रपति ने,

अनुमति दी है तो ऐसा अधिनियम तथा ऐसे किसी अधिनियम का कोई उपबन्ध केवल इस कारण से अमान्य न होगा कि इस संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिपारिश न की गई या पूर्व मंजूरी न दी गई थी।


  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २५४ के खंड (१) में "किसी उपबन्ध, अथवा समवर्ती-सूची में प्रगणित विषयों में से एक के बारे में वर्तमान विधि के, किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो खंड (२) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए यथास्थिति" शब्द, कोष्ठक और अंकों के स्थान पर "किसी उपबन्ध के विरुद्ध है तो" शब्द रख दिये जायेंगे और "या वर्तमान विधि" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे और सम्पूर्ण खंड (२) लुप्त कर दिया जायेगा।
  2. २.० २.१ "प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखित" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  3. अनुच्छेद २५५ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।