भाग ११—संघ और राज्यों के सम्बन्ध—
अनु॰ २५८—२६१
कतिपय
अवस्थाओं में राज्यों
को शक्ति आदि
देने की संघ
की शक्ति२५८. (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य की सरकार की सम्मति से राष्ट्रपति, उस सरकार को या उस के पदाधिकारियों को ऐसे किसी विषय संबंधी कृत्य, जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, शर्तों के साथ या बिना शर्त सौंप सकेगा।
(२) ऐसे विषय से, जिस के बारे में राज्य के विधानमंडल को विधि बनाने की शक्ति नहीं है, सम्बद्ध होने पर भी संसद्-निर्मित विधि, जो किसी राज्य में लागू है, उस राज्य अथवा उस के पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति दे सकेगी और कर्तव्य आरोपित कर सकेगी अथवा शक्तियां दिया जाना और कर्तव्य आरोपित किया जाना प्राधिकृत कर सकेगी।
(३) जहां इस अनुच्छेद के आधार पर किसी राज्य अथवा उस के पदाधिकारियों या प्राधिकारियों को शक्तियां दी गई हैं, अथवा कर्तव्य आरोपित कर दिये गये हैं वहां उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के बारे में राज्य द्वारा प्रशासन में किये गये अतिरिक्त खर्चों के बारे में भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी राशि दी जायेगी जो करार पाई जाये अथवा, करार के अभाव में, जिसे भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ निर्धारित करे।
संघ को कृत्य
सौंपने की राज्यों
की शक्ति[१][२५८क. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी भारत सरकार की सम्मति से किसी राज्य का राज्यपाल उस सरकार को या उस के पदाधिकारियों को ऐसे किसी विषय संबंधी कृत्य जिन पर, उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, शर्तों के साथ या शर्त बिना सौंप सकेगा।]
२५९. [प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में के राज्यों के सशस्त्र बल] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित।
भारत के बाहर
के राज्य-क्षेत्रों के
सम्बन्ध में संघ का
क्षेत्राधिकार२६०. भारत सरकार किसी ऐसे राज्य-क्षेत्र की सरकार से, जो भारत राज्य-क्षेत्र का भाग नहीं है, करार कर के ऐसे राज्य-क्षेत्र की सरकार में निहित किसी कार्यपालक, विधायी या न्यायिक कृत्यों को ग्रहण कर सकेगी किन्तु प्रत्येक ऐसा करार विदेशी क्षेत्राधिकार के प्रयोग से सम्बद्ध किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन रहेगा और उससे शासित होगा।
सार्वजनिक क्रिया
अभिलेख और
न्यायिक कार्यवाहियाँ२६१. (१) भारत के राज्य-क्षेत्र में सर्वत्र, संघ की और प्रत्येक राज्य की, सार्वजनिक क्रियाओं, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहियों को पूरा विश्वास और पूरी मान्यता दी जायेगी।
[२](२) खंड (१) में निर्दिष्ट क्रियाओं, अभिलेखों और कार्यवाहियों की सिद्धि की रीति और शर्तें तथा उन के प्रभाव का निर्धारण संसद्-निर्मित विधि द्वारा उपबन्धित रीति के अनुसार होगा।
(३) भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में के व्यवहार न्यायालयों द्वारा दिये गये अन्तिम निर्णय या आदेश उस राज्य-क्षेत्र के अन्दर कहीं भी विधि अनुसार निष्पादन योग्य होंगे।