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भारत का संविधान

 

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—अनु॰ २७१-२७४

२७१.अनुच्छेद २६६ और २७० में किसी बात के होते हुए भी संसद् उन संघ के प्रयोजनों अनुच्छेदों में निर्दिष्ट शल्कों या करों में से किसी की भी किसी समय संघ के प्रयोजनों के लिये कछ के लिये अधिभार द्वारा वृद्धि कर सकेगी तथा ऐसे किसी अधिभार के समस्त पागम शल्कों और करों भारत की संचित निधि के भाग होंगे।

संघ के प्रयोजन
के लिए कुछ
शुल्कों और करों
पर अधिभार

२७२.संघ सूची में वर्णित औषधीय तथा प्रसाधन-सामग्री पर उत्पादन- कर जो संघ द्वारा शुल्क से अन्य संघ-उत्पादन शुल्क भारत सरकार द्वारा उद्‌गृहीत और सगहीत किये जायेंगे, किन्तु यदि संसद् विधि द्वारा यह उपबन्धित करे तो शुल्क लगाने वाली विधि जो संघ और जिन राज्यों को लाग होती हो उन राज्यों को भारत की संचित निधि में से उस राज्यों के बीच शुल्क के शुद्ध आगमों के पूर्ण अथवा किसी भाग के बराबर राशि दी जायेगी और वे राशियां उन राज्यों के बीच ऐसे वितरण-सिद्धान्तों के अनुसार वितरित की जायेंगी जैसे की संसद् विधि द्वारा सूत्रित करे ।

कर जो संघ द्वारा
उद्‌गृहीत है तथा
जो संघ और
राज्यों के बीच
वितरित किए जा
सकेंगे

[१]२७३.(१) पटसन या पटसन से बनी हुई वस्तुओं पर निर्यात-शुल्क पटसन या पटसन के प्रत्येक वर्ष के शद्ध मागम के किसी भाग को आसाम, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और से बनी वस्तनों बिहार राज्यों को सौंपने के स्थान में उन राज्यों के राजस्व में सहायक अनुदान के पर निर्यात शल्क रूप में प्रत्येक वर्ष में भारत की संचित निधि पर ऐसी राशियां भारित की जायेंगी के स्थान में अन-जैसी कि विहित की जायें।

पटसन या पटसन
से बनी वस्तुओं
पर निर्यात शुल्क
के स्थान में
अनुदान

(२) पटसन या पटसन से बनी हुई वस्तुओं पर जब तक भारत सरकार कोई निर्यात-शुल्क उद्गृहीत करती रहे अथवा इस संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति,इन दोनों में से जो भी पहिले हो उसके होने तक, इस प्रकार विहित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित बनी रहेंगी।

(३) इस अनुच्छेद में "विहित” पद का वही अर्थ है जो इस संविधान के अनुच्छेद २७० में है।

२७४.(१) कोई विधेयक या संशोधन, जिस कर या शुल्क में राज्यों राज्य हितों से का हित सम्बद्ध है, उस को आरोपित या आपरिवर्तित करता है, अथवा जो भारत सम्बद्ध करों पर आय-कर से सम्बद्ध अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिये परिभाषित "कृषि-आय" प्रभाव डालने पदावलि के अर्थ को परिवर्तित करता है, अथवा जो उन सिद्धान्तों को प्रभावित वाले विधेयकों के करता है जिनसे कि इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबन्धों में से किसी के अधीन राज्यों लिये राष्ट्रपति को धन वितरणीय हैं या हो सकेंगे, अथवा जो संघ के प्रयोजन के लिये ऐसा कोई अधि-की पूर्व सिरिश भार आरोपित करता है जैसा कि इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबन्धों में वर्णित की अपेक्षा है, राष्ट्रपति की सिपारिश के विना संसद् के किसी सदन में न तो पुरःस्थापित और न प्रस्तावित किया जायेगा।

राज्य हितों से
संबंध करो पर
प्रभाव डालने
विधायको के
लियेरास्ट्रपति
पूर्व सिफारिस
की अपेक्षा

(२) इस अनुच्छेद में "जिस कर या शुल्क में राज्यों का हित सम्बद्ध है पदावलि से अभिप्रेत है—

(क) कोई कर या शुल्क जिसका शुद्ध आगम पूर्णतः या अंशतः किसी राज्य को सौंप दिया जाता है, अथवा
(ख) कोई कर या शुल्क जिसके शुद्ध पागम के निर्देश से भारत संचित निधि में से तत्समय किसी राज्य को राशियां दी जानी हैं।

  1. अनुच्छेद २७३, जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।