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भारत का संविधान

भाग १२--वित, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद-अनु० २७६-२७९

परन्तु यदि इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले वाले वित्तीय वर्ष में किसी राज्य में अथवा किसी ऐसी नगरपालिका, मंडली या प्राधिकारी में वृत्तियों, व्यापारों आजीविकाओं या नौकरियों पर ऐसा कर लागू था जिसकी दर या जिस की अधिक-तम दर दो सौ पचास रुपये प्रति वर्ष से अधिक थी तो ऐसा कर उस समय तक उद्-गृहीत होता रहेगा जब तक कि संसद् विधि द्वारा इस के प्रतिकूल उपबन्ध न करे तथा संसद द्वारा इस प्रकार बनाई हुई कोई विधि या तो सामान्यतया या किन्हीं उल्लि-खित राज्यों, नगरपालिकाओं, मंडलियों या प्राधिकारियों के सम्बन्ध में बनाई जा सकेगी

(३)वृत्तियों,व्यापारों,आजीविकाओं और नौकरियों पर कर के विषय में उक्त प्रकार विधियां बनाने की राज्य के विधानमंडल की शक्ति का यह अर्थ न किया जायेगा कि वत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नौकरियों से प्रोद्भूत या उत्पन्न प्राय पर करों के विषय में विधियां बनाने की संसद की शक्ति किसी प्रकार सीमित की गई है।

व्यावृति

२७७.जो कर, शुल्क, उपकर या फीस, इस संविधान से ठीक पहिले किसी राज्य की सरकार द्वारा, अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य , नगर, जिला अथवा अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिये विधिवत् उद्गृहीत किये जा रहे थे, वे कर, शुल्क, उपकर या फीस संघ-सूची में वर्णित होने पर भी उद्गृहीत किये जाते रहेंगे तथा उन्हीं प्रयोजनों के हेतु उपयोग में लाये जा सकेंगे जब तक कि संसद् विधि द्वारा इस के प्रतिकूल उपबन्ध न करे ।

२७८.[कतिपय वित्तीय विषयों के बारे में प्रथम अनुसूची के भाग (ख) के राज्यों से करार] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, की धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित ।

शुद्ध आगम की
गणना

२७९.(१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में 'शुद्ध आगम" से किसी कर या शुल्क के सम्बन्ध में उस पागम से अभिप्राय है जो उसके संग्रह के खर्चों को घटाने के पश्चात बचे, तथा उन उपबन्धों के प्रयोजनों के लिये किसी क्षेत्र के भीतर अथवा उससे, मिले हुए माने जाने वाले किसी कर या शुल्क का अथवा किसी कर या शुल्क के किसी भाग का शुद्ध पागम भारत के नियन्त्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा अभिनिश्चित तथा प्रमाणित किया जायेगा, जिसका प्रमाण-पत्र अन्तिम होगा।


(२) किसी अवस्था में जहां इस भाग के अधीन किसी शुल्क या कर का आगम किसी राज्य को विनियोजित किया जाता है या किया जाये वहां उपरोक्त उपबन्ध के तथा इस अध्याय के किसी अन्य स्पष्ट उपबन्ध के अधीन रहते हुये संसद्-निर्मित कोई विधि अथवा राष्ट्रपति का कोई आदेश, उस रीति का, जिस से कि आगम की गणना की जानी है, उस समय का, जिससे या जिस में, तथा उस रीति का, जिस से कोई शोधन किये जाने हैं, एक वित्तीय वर्ष और दूसरे वित्तीय वर्ष में समायोजन करने का तथा अन्य किसी प्रासंगिक और सहायक बातों का उपबन्ध कर सकेगा।


'जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में संविधान के प्रारम्भ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जाएगा मानो कि वे संविधान (जम्मू और कश्मीर को लागू होना) आदेश १९५४ के प्रारम्भ अर्थात १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं।