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भारत का संविधान

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद
अनु० २८६-२८८

[१]*

[२](२) यह अवधारित करने के लिये कि खंड (१) में वणित प्रकारों में से किसी में की वस्तुओं का क्रय या विक्रय कब होता है संसद् विधि द्वारा सिद्धान्त सूत्रित कर सकेगी।

(३) जहां तक कि किसी राज्य की कोई विधि, अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य में ऐसी वस्तुओं के, जो कि संसद् द्वारा विधि द्वारा विशेष महत्व की घोषित की गई हैं, क्रय या विक्रय पर किसी कर का आरोपण करती है या आरोपण प्राधिकृत करती है, वहां तक वह विधि उस करके उद्ग्रहण की व्यवस्था, दरों और अन्य प्रसंगतियों के सम्बन्ध में ऐसे निर्बन्धनों और शर्तो के अध्यधीन होगी जैसी कि संसद विधि द्वारा उल्लिखित कर।]

वद्यत पर करों से
विमुक्ति
२८७. जहां तक कि संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध करे उस को छोड़ कर (सरकार द्वारा या अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पादित) विद्युत के उपभोग या क्रय पर, जो—

(क) भारत सरकार द्वारा उपभुक्त है अथवा भारत सरकार द्वारा उपभोग किये जाने के लिये उस सरकार को बेची गई है; अथवा
(ख) किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में भारत सरकार या रेलवे समवाय द्वारा, जो उस रेलवे को चलाती है उपभक्त है, अथवा किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में उपभोग के लिये उस सरकार अथवा किसी ऐसे रेलवे समवाय को बेची गई है।

राज्य की कोई विधि कर नहीं आरोपित करेगी और न कर आरोपित करना प्राधिकृत करेगी तथा विद्युत के क्रय पर करारोपण करने, या करारोपित करना प्राधिकृत करने वाली कोई ऐसी विधि यह सुनिश्चित करेगी कि भारत सरकार को उस सरकार द्वारा उपभोग किये जाने के लिये, अथवा किसी ऐसे रेलवे समवाय को, जैसा कि उपर्युक्त है, किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में उपभोग के लिये, बेची गई विद्युत का मुल्य उस मूल्य से, जो कि विद्युत की प्रचूर-मात्रा के अन्य उपभोक्ताओं से लिया जाता है, इतना कम होगा, जितनी कि कर की राशि है।

पानी या विद्युत के
विषय में राज्य
द्वारा लिये जाने
वाले करों से कुछ
अवस्थानों में
विमुक्ति
२८८. (१) जहां तक कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा उपबन्ध करे, पानी या विद्यालय उसको छोड़ कर इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले किसी राज्य में की कोई प्रवृत्त विधि किसी पानी या विद्युत के बारे में, जो अन्तर्राज्यिक नदियों या नदी-दूनों के विनियमन या विकास के लिये किसी वर्तमान विधि से, अथवा संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि से, स्थापित किसी प्राधिकारी द्वारा जमा की गई, पैदा की गई, उपभुक्त, वितरित या बेची गई है, कोई कर नहीं आरोपित करेगी और न कर आरोपित करना प्राधिकृत करेगी।

व्याख्या—इस अनुच्छेद में “राज्य में की कोई प्रवृत्त विधि" के अन्तर्गत राज्य की ऐसी विधि भी होगी, जो इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व पारित या निर्मित हो तथा पहिले ही निरसित न कर दी गई हो चाहे फिर वह या उसके कोई भाग तब पूर्णतः अथवा किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों में, प्रवर्तन में न हों।


  1. खंड (१) की व्याख्या संविधान (षष्ठ संशोधन), अधिनियम १९५६, धारा ४ द्वारा लुप्त कर दी गयी।
  2. उपरोक्त के ही द्वारा मूल खंड (२) और (३) के स्थान पर रखे गये।