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भारत का संविधान

भाग १३.—भारत के राज्य-क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम—
अनु० ३०५-३०७

वर्तमान विधियों
और राज्य एका-
धिपत्यों के लिए
उपबन्ध करने
वाली विधियों की
व्यावृत्ति
[१]३०५. अनच्छेद ३०१ और ३०३ की कोई बात किसी वर्तमान विधि के उपबन्धों पर, वहां तक के सिवाय जहां तक कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे कोई प्रभाव न डालेगी; और अनुच्छेद ३०१ की कोई बात संविधान (चतर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५ के प्रारंभ से पूर्व निर्मित किसी विधि के प्रवर्तन पर वहां तक जहां तक कि वह विधि किसी ऐसे विषय से संबद्ध है जैसा कि अनच्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दीष्ट है, कोई प्रभाव न डालंगी या ऐसे किसी विषय से संबद्ध, जैसा कि अनुच्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट है, कोई विधि बनाने से संसद् या किसी राज्य के विधानमंडल को न रोकेगी।]

३०६. [प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित कतिपय राज्यों की व्यापार और वाणिज्य पर निर्बन्धनों के आरोपण की शक्ति] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित।

अनुच्छेद ३०१ से
३०४ तक के
प्रयोजनों को
कार्यान्वित करने
के लिये प्राधि-
कारी की नियुक्ति
३०७. संसद विधि द्वारा ऐसे प्राधिकारी की नियुक्ति कर सकेगी जैसा कि वह सेअनच्छेद ३०१, ३०२, ३०३ और ३०४ के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये समुचित समझे तथा इस प्रकार नियुक्त प्राधिकरी को ऐमी शक्तियां और ऐसे कर्तव्य सौंप सकेगी जैसे कि वह आवश्यक समझे।18-1 Law/57


  1. संविधान (चतुर्थ संशोधन ) अधिनियम, १९५५, धारा ४ द्वारा प्रतिस्थापित।