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भारत का संविधान

भाग १४-संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु० ३१७--३२०

(४) यदि लोकसेवा-आयोग का सभापति या अन्य कोई सदस्य भारत सरकार के या राज्य की सरकार के द्वारा, या ओर की गई किसी संविदा या करार में, निगमित समवाय के सदस्य के नाते तथा उस के अन्य सदस्यों के साथ साथ के सिवाय, किसी प्रकार से भी संपृक्त या हित-सम्बद्ध है या हो जाता है अथवा किसी प्रकार से उस के लाभ में अथवा तदुत्पन्न किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है, तो वह खंड (१) के प्रयोजनों के लिये कदाचार का अपराधी समझा जायेगा।

आयोग के सदस्यों
तथा कर्मचारी-
वन्द की सेवाओं
की शर्तों के बारे
में विनियम बनाने
की शक्ति
३१८. संघ-आयोग या संयुक्त आयोग के बारे में राष्ट्रपति तथा राज्य-आयोग के बारे में उस राज्य का राज्यपाल [१]* * * विनियमों द्वारा—

(क) प्रायोग के सदस्यों की संख्या तथा उन की सेवानों की शर्तों का निर्धारण कर सकेगा; तथा
(ख) प्रायोग के कर्मचारी-वृन्द के सदस्यों की संख्या के तथा उन की सेवा की शर्तों के सम्बन्ध में उपबन्ध कर सकेगा:

परन्तु लोकसेवा-आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उस की नियुक्ति के पश्चात उस को अलाभकारी परिवर्तन न किया जायेगा।

आयोग के सदस्यों
द्वारा ऐसे सदस्य
न रहने पर पदों
के धारण के
सम्बन्ध में प्रति-
षेध
३१९. पद पर न रहने पर—

(क) संघ लोकसेवा-आयोग का सभापति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नौकरी के लिये अपात्र होगा;
(ख) राज्य के लोकसेवा-आयोग का सभापति संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य के लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन या किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा;
(ग) संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति से अतिरिक्त कोई अन्य सदस्य संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति के रूप में अथवा राज्य-लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा;
(घ) किसी राज्य के लोकसेवा-आयोग के सभापति से अतिरिक्त अन्य कोई सदस्य संघ-लोकसेवा-आयोग के सभापति या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी, या किसी अन्य, राज्य-लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा।

लोकसेवा आयोगों
के कृत्य

३२०. (१) संघ तथा राज्य के लोकसेवा-आयोगों का कर्तव्य होगा कि क्रमशः संघ की सेवामों और राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिये परीक्षाओं का संचालन करे।


  1. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।