पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

भाग १५
निर्वाचन

निर्वाचनों का
अधी
क्षण, निदेशन और
नियंत्रण निर्वाचन
आयोग में निहित
होंगे

[१]३२४. (१) इस संविधान के अधीन संसद् और प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के लिये निर्वाचन के लिये नामावलि तैयार कराने का तथा उन समस्त निर्वाचनों के संचालन का तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, जिस के अन्तर्गत संसद् के तथा राज्यों के विधानमंडलों के निर्वाचनों से उद्भूत या संसक्त सन्देहों और विवादों के विनिश्चयों के लिये निर्वाचन न्यायाधिकरण की नियुक्ति भी है, एक आयोग में निहित होगा (जो इस संविधान में "निर्वाचन आयोग" के नाम से निर्दिष्ट है)।

(२) निर्वाचन-आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा, यदि कोई हों तो, अन्य उतने निर्वाचन-आयुक्तों से, जितन कि राष्ट्रपति समय समय पर नियत करे, मिल कर बनेगा तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, संसद् द्वारा उस लिये बनाई हुई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।

(३) जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया गया हो तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के सभापति के रूप में कार्य करेगा

(४) लोक-सभा तथा प्रत्येक राज्य की विधान सभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन से पूर्व तथा विधान-परिषद् वाले प्रत्येक राज्य की विधान-परिषद् के लिये‌ पहिले साधारण निर्वाचन तथा तत्पश्चात् प्रत्येक द्विवार्षिक निर्वाचन से पूर्व राष्ट्रपति निर्वाचन प्रयोग से परामर्श करके खंड (१) द्वारा निर्वाचन आयोग को दिये गये कृत्यों‌ के पालन में प्रयोग की सहायता के लिये ऐसे प्रादेशिक आयुक्त भी नियुक्त कर सकेगा जैसे कि वह आवश्यक समझे

(५) संसद् द्वारा निर्मित किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जैसी कि राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्धारित करे :

परन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त अपने पद से वैसे कारणों और वैसी रीति के बिना न हटाया जायेगा जैसे कारणों और रीति से उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हटाया जा सकता है तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अपनी नियुक्ति के पश्चात् उस की सेवा की शर्तों में उस को अलाभकारी कोई परिवर्तन न किया जायेगा :

परन्तु यह और भी कि किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या प्रादेशिक आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिपारिश के बिना पद से हटाया न जायेगा।

(६) जब निर्वाचन प्रयोग ऐसी प्रार्थना करे, तब राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल [२]* * * निर्वाचन आयोग या प्रादेशिक आयुक्त को ऐसे कर्मचारी-वृन्द प्राप्य करायेगा जैसे कि खंड (१) द्वारा निर्वाचन प्रयोग को दिये गये कृत्यों के निर्वहन के लिये आवश्यक हों।


  1. अनुच्छेद ३२४ जम्मू और कश्मीर राज्य को केवल वहां तक लागू होगा जहां तक कि वह संसद् के लिये और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए निर्वाचनों से सम्बन्धित है।
  2. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।