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भाग २१
अस्थायी तथा अन्तर्कालीन उपबन्ध
राज्य-सूची में के
कुछ विषयों के
बार मे विधि बनाने
की संसद् की इस
प्रकार अस्थायी
शक्ति मानो कि ये
विषय समवर्ती सूची
में है
[१]३६९. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारम्भ से पांच वर्ष की कालावधि में निम्नलिखित विषयों के बारे में विधि बनाने की संसद् को इस प्रकार शक्ति होगी मानो कि ये समवर्ती सूची में प्रगणित है, अर्थात्—
- (क) सुती और ऊनी वस्त्रों कच्ची रूई (जिस के अन्तर्गत बनी हुई रूई और बिना धुनी कपास है) बिनौले, कागज (जिसके अन्तर्गत समाचारपत्र का कागज है), खाद्य पदार्थ (जिसके अन्तर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं), ढोरों के चारे (जिसके अन्तर्गत खली और अन्य संस्कृति चारे आते हैं), कोयले (जिसके अन्तर्गत कोक और पत्थर कोयला अन्य पदार्थ है), लोहे, इस्पात और अभ्रक का किसी राज्य के अन्दर व्यापार और वाणिज्य तथा उनका उत्पादन, सम्भरण और वितरण,
- (ख) खंड (क) में वर्णित विषयों में से किसी से सम्बद्ध विधियों के विरुद्ध अपराध, उच्चतम न्यायालय से भिन्न सत्र न्यायालयों का उन विषयों में से किसी के बारे में क्षेत्राधिकार और शक्तियां तथा उन विषयों से किसी के सम्बन्ध में किसी न्यायालय में ली जाने वाली फीसों से अन्य फीसें;
किन्तु संसद् द्वारा निर्मित कोई विधि, जिसे इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अभाव में बनाने के लिये संसद् सक्षम न होती, उक्त कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक उसकी समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ी गई बातों से अन्य बातों के सम्बन्ध में प्रभावहीन हो जायेगी।
जम्मू और कश्मीर
राज्य के सम्बन्ध में
अस्थायी उपबन्ध
[२]३७० (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,—
- (क) अनुच्छेद २३८ के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू न होंगे;
- (ख) उक्त राज्य के सम्बन्ध में विधि बनाने की संसद् की शक्ति—
- (१) संघ-सूची और समवर्ती सूची में के जिन विषयों को राज्य की सरकार से परामर्श करके राष्ट्रपति उन विषयों का तत्मस्थानी विषय घोषित कर दे जो भारत डोमीनियन में उस राज्य के प्रवेश को शासित करने वाली प्रवेश लिखत में उल्लिखित ऐसे विषय है जिनके बारे में डोमीनियन विधान-मंडल विधि बना सकता है उन विषयों तक, तथा
- ↑ अनुच्छेद ३६९ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
- ↑ इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति ने जम्मू और कश्मीर राज्य की संविधान सभा की सिपारिश पर यह घोषणा की कि १७ नवम्बर, १९५२ से उक्त अनुच्छेद इस रूपभेद के साथ प्रवर्तनीय होगा कि उसके खंड (१) में की व्याख्या के स्थान पर निम्नलिखित व्याख्या रख दी गयी है, अर्थात्—
"व्याख्या—इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिये राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो राज्य की तत्समय पदारूढ मंत्रि-परिषद् की मंत्रणा पर कार्य करने वाले जम्मू और कश्मीर के सदरे रियासत के रूप में राज्य की विधान-सभा की सिपारिश पर राष्ट्रपति द्वारा तत्समय अभिज्ञात है।"
(विधि मंत्रालय आदेश संख्या सी॰ ओ॰ ४४ तारीख १५ नवम्बर, १९५२)