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भारत का संविधान

 

भाग २१—अस्थायी तथा अन्तर्कालीन उपबन्ध—अनु॰ ३७०-३७१

(२) उक्त सूचियों में के जिन अन्य विषयों को उस राज्य की सरकार की सहमति से राष्ट्रपति आदेश द्वारा उल्लिखित करें उन विषयों तक सीमित होगी।

व्याख्या—इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिये राज्य की सरकार से अभिप्रेत है वह व्यक्ति जिसे राष्ट्रपति १९४८ की मार्च के पांचवें दिन निकाली गई महाराजा की उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्रि-परिषद् की मंत्रणा के अनुसार कार्य करने वाला जम्मू और कश्मीर का महाराजा तत्समय अभिज्ञात करना है;

(ग) अनुच्छेद १ के और इस अनुच्छेद के उपबन्ध उस राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे;
(घ) इस संविधान के उपबन्धों में से ऐसे अन्य उपबन्ध ऐसे अपवादों और रूपभेदों के साथ उस राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे जैसे कि राष्ट्रपति [१]आदेश द्वारा उल्लिखित करे :
परन्तु ऐसा कोई आदेश, जो उपखंड (ख) की कंडिका (१) में निर्दिष्ट राज्य के प्रवेश लिखत में उल्लिखित विषयों से सम्बद्ध हो राज्य की सरकार से परामर्श किये बिना न निकाला जायेगा :
परन्तु यह और भी कि ऐसा कोई आदेश, जो अन्तिम पूर्ववर्ती परन्तुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से सम्बद्ध हो, उस सरकार की सहमति के बिना न निकाला जायेगा

(२) यदि उस राज्य की सरकार द्वारा खंड (१) के उपखंड (ख) की कंडिका (२) में अथवा उस खंड के उपखंड (घ) के दूसरे परन्तुक में निर्दिष्ट सहमति, उस राज्य के लिये संविधान बनाने के प्रयोजन वाली संविधान सभा के बुलाये जाने से पहिले दी जाये तो उसे ऐसी सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिये रखा जायेगा जैसा कि वह उस पर ले।

(३) इस अनुच्छेद के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति लोक-अधिसूचना द्वारा घोषित कर सकेगा कि यह अनुच्छेद ऐसी तारीख में प्रवर्तनहीन, अथवा ऐसे अपवादों और रूपभेदों के सहित ही प्रवर्तन में होगा जैसे कि वह उल्लिखित करे :

परन्तु ऐसी अधिसूचना को राष्ट्रपति द्वारा निकाले जाने से पहिले खंड (२) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिपारिश आवश्यक होगी।

आंध्र प्रदेश, पंजाब
और मुम्बई राज्यों
के विषय में विशेष
उपबन्ध:

[२]३७१ (१) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति आंध्र प्रदेश या पंजाब राज्य के सम्बन्ध में किये गये आदेश द्वारा राज्य की विधान-सभा की प्रादेशिक समितियों के गठन और कृत्यों, राज्य की सरकार के कार्य सम्बन्धी नियमों में और विधान-सभा प्रक्रिया सम्बन्धी नियमों में किये जाने वाले रूपभेदों के लिये तथा प्रादेशिक समितियों की उचित कृत्यकारिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यपाल के किसी विशेष उत्तरदायित्व के लिये उपबन्ध कर सकेगा।


  1. विधि-मंत्रालय आदेश संख्या सी॰ प्रो॰ ४८ तारीख १४ मई, १९५४ भारत सरकार के असाधारण गजट के साथ पृष्ठ ८२१ पर प्रकाशित संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश १९५४ देखिए।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २२ द्वारा मूल अनुच्छेद ३७१ के स्थान पर रखा गया।

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