भाग २१ अस्थायी तथा अन्तर्कालीन उपबन्ध—अनु॰ ३७२—३७२क
- (३) खंड (२) की कोई बात—
- (क) राष्ट्रपति को इस संविधान के प्रारम्भ से [१][तीन वर्ष] की समाप्ति के पश्चात् किसी विधि का कोई अनुकूलन या रूपभेद करने की शक्ति देने वाली, अथवा
- (ख) किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूल या रूपभेद की गई किसी विधि को निरासित या संशोधित करने से रोकने वाली, न समझी जायेगी।
व्याख्या १—इस अनच्छेद में "प्रवत्त विधि" पदावलि के अन्तर्गत है कोई विधि जो इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व भारत-राज्य-क्षेत्र में किसी विधान-मंडल द्वारा वा अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित या निर्मित हुई हो तथा पहिले ही निरासित न कर दी गई हो चाहे फिर बढ़ या उस के कोई भाग तब पूर्णतः अथवा किन्ही विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हों।
व्याख्या २.—भारत राज्य क्षेत्र में के किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित या निर्मित किसी ऐसी विधि का, जिस का इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले राज्य क्षेत्रातीत प्रभाव तथा भारत राज्य क्षेत्र में भी प्रभाव था, उपरोक्त किन्हीं अनकूलनों ओर रूपभेदों के अधीन रह कर राज्य क्षेत्रातीन प्रभाव बना रहेगा।
व्याख्या ३.—इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ न किया जायेगा कि वह किसी अस्थायी प्रवृत्त विधि को उस की समाप्ति के लिये नियत तारीख से अथवा उस तारीख से, जिसको कि यदि यह संविधान प्रवृत्त न हुआ होता तो वह समाप्त हो जाती, आगे प्रवृत्त बनाये रखती है।
व्याख्या ४.—किसी प्रान्त के राज्यपाल द्वारा भारत-शासन अधिनियम, १९३५ की धारा ८८ के अधीन प्रख्यापित तथा इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले प्रवृत्त अध्यादेश, यदि तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहिले ही वापिस न ले लिये गया हो तो, ऐसे प्रारम्भ के पश्चात् अनुच्छेद ३८२ के खंड (१) के अधीन कृत्यकारिणी उस राज्य की विधान-सभा के प्रथम अधिवेशन से छः सप्ताह की समाप्ति पर प्रवर्तनहीन होगा तथा इस अनुच्छेद की किसी बात का यह अर्थ न किया जायेगा कि वह ऐसे किसी अध्यादेश को उक्त कालावधि से आगे प्रवृत्त बनाये रखती है।
विधियों का अनु-
कूलन करने की
राष्ट्रपति की शक्ति