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भारत का संविधान

 

भाग २१—प्रस्थायी तथा अन्तर्कालीन उपबन्ध—अनु॰ ३७२६-३७४

(२) खंड (१) की कोई बात किसी सक्षम विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी को राष्ट्रपति द्वारा उक्त खंड के अधीन अनुकूलन या रूपभेद की गयी किसी विधि को निरसित या संशोधित करने से रोकने वाली न समझी जाएगी।]

निवारक निरोध में
रखे गये व्यक्तियों
के सम्बन्ध में कुछ
अवस्थाओं में
आदेश देने की
राष्ट्रपति की शक्ति
[१]३७३. जब तक अनुच्छेद २२ के खंड ७ के अधीन संसद् उपबन्ध न करें, अथवा जब तक इस संविधान के प्रारम्भ के पश्चात् एक वर्ष समाप्त न हो, जो भी इनमें से पहिले हो, तब तक उक्त अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो कि उसके खंड (४) और (७) में संसद् के प्रति किसी निर्देश के स्थान में राष्ट्रपति के प्रति निर्देश, तथा उन उपखंडों में संसद् द्वारा निर्मित किसी विधि के प्रति निर्देश के स्थान में राष्ट्रपति द्वारा निकाले गये आदेश का निर्देश, रख दिया गया हो।

फेडरलन्यायालय के
न्यायाधीशों के तथा
फेडरलन्यायालय में
अथवा सपरिषद्
सम्राट के समक्ष
लंबित कार्यवाहियों
के बारे में उपबन्ध
[२]३७४ (१) इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायायल में पदस्थ न्यायाधीश, यदि वे अन्यथा पसन्द न कर चुके हों, ऐसे प्रारम्भ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जायेंगे तथा तत्पश्चात् ऐसे वेतनों और भत्तों तथा अनुपस्थिति छुट्टी और निवृत्ति वेतन के विषय में ऐसे अधिकारों का हक्क रखेंगे जैसे कि उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीशों के बारे में अनुच्छेद १२५ के अधीन उपबन्धित है।

(२) इस संविधान के प्रारम्भ पर फेडरलन्यायालय में लम्बित सभी व्याहार-वाद, अपीलें और कार्यवाहियां, चाहे व्यवहार सम्बन्धी चाहे दाण्डिक उच्चतम न्यायालय को चली गई रहेंगी, तथा उच्चतमन्यायालय को उनके सुनने तथा निर्धारण करने का क्षेत्राधिकार होगा तथा फेडरलन्यायालय के इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले सुनाये या दिये गये, निर्णयों और आदेशों का ऐसा बल और प्रभाव होगा मानो‌कि वे उच्चतमन्यायालय द्वारा सुनाये या दिये गये हों।

(३) इस संविधान की कोई बात भारत राज्य क्षेत्र में के किसी न्यायालय के किसी निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश की, या के विषय में, अपीलों या याचिकाओं को निबटाने के लिये सपरिषद् सम्राट् के क्षेत्राधिकार के प्रयोग को वहां तक अमान्य न करेगी जहां तक कि ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग विधि द्वारा प्राधिकृत है तथा ऐसी किसी अपील या याचिका पर इस संविधान के प्रारम्भ के पश्चात् दिया गया सपरिषद्सम्राट् का कोई आदेश सब प्रयोजनों के लिये ऐसे प्रभावी होगा मानो कि वह उच्चतम-न्यायालय द्वारा उस क्षेत्राधिकार के प्रयोग में, जो ऐसे न्यायालय को इस संविधान‌ द्वारा दिया गया है, दिया गया कोई आदेश या आज्ञप्ति हो।

(४) इस संविधान के प्रारम्भ पर, और से, प्रथम अनुसूची के भाग (ख)

में उल्लिखित किसी राज्य में अन्तःपरिषद के रूप में कृत्यकारी प्राधिकारी का उस राज्य में के किसी न्यायालय के किसी निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश की अपील या याचिका को ग्रहण या निबटाने का क्षेत्राधिकार समाप्त हो जायेगा तथा ऐसे प्राधिकारी के समक्ष ऐसे प्रारम्भ पर लम्बित सब अपीलें और अन्य कार्यवाहियां उच्चतमन्यायालय को भेज दी जायेंगी और उस के द्वारा निबटायी जायेंगी।


  1. अनुच्छेद ३७३ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  2. "जम्मू और कश्मीर" राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३७४ में—
    (१) खंड (१), (२), (३) और (५) लुप्त कर दिये जाएंगे;
    (२) खंड (४) में किसी राज्य की अन्तःपरिषद् के रूप में कृत्यकारी प्राधिकारी के प्रति निर्देश का ऐसे अर्थ किया जाएगा मानो कि वह जम्मू और कश्मीर संविधान अधिनियम, १८९६ के अधीन गठित मंत्रणादाता मंडली के प्रति निर्दश है, और संविधान के आरम्भ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जाएगा मानो कि व संविधान (जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होना) आदेश १९५४ के प्रारम्भ अर्थात् १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं।