पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/३५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६
भारत का संविधान

 

द्वितीय अनुसूची

(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में निवृत्ति उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान का समतुल्य निवृत्ति वेतन, घटा दिया जाएगा।]

(२) उच्चतमन्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को, बिना किराया दिये, पदावास के उपयोग का हक्क होगा।

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) में की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले—

(क) फेडरलन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के रूप में पद धारण किये था, तथा जो ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७४ के खंड (१) के अधीन उच्चतमन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, अथवा
(ख) फेडरलन्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतमन्यायालय का (मुख्य न्यायाधिपति से अन्य) कोई न्यायाधीश बन गया है,

उस कालावधि में, जिस में कि वह ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है, लागू न होगी, तथा प्रत्येक न्यायाधीश को, जो इस प्रकार उच्चतमन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश हो जाता है, यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में, वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन से अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी राशि पाने का हक्क होगा जो कि इस प्रकार उल्लिखित वेतन तथा ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले उसे मिलने वाले वेतन के अन्तर के बराबर

(४) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत राज्य क्षेत्र के भीतर अपने कर्तव्य पालन में की गई यात्रा में किये गये व्ययों की पूर्ति के लिये ऐसे युक्तियक्त भत्ते पायेगा तथा यात्रा सम्बन्धी उसे ऐसी सुविधाएं दी जायेगी जैसी कि राष्ट्रपति समय समय पर विहिन करे

(५) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधी की अनुपस्थिति छुट्टी (जिस के अन्तर्गत छुट्टी सम्बन्धी भत्ते भी है) तथा निवृत्ति वेतन के बारे में अधिकार उन उपबन्धों से शासित होंगे जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे।

१०.[१][(१) उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में निम्नलिखित दर में प्रतिमास वेतन दिया जाएगा, अर्थात्—

मुख्य न्यायाधिपति ...४,००० रुपये
कोई अन्य न्यायाधीश ...३,५०० रुपये

परन्तु यदि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अपनी नियक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की अथवा उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पहिले की गयी सेवा के बारे में (निर्योग्यता या क्षति पेंशन के अतिरिक्त) कोई निवृत्ति-वेतन मिलता हो तो उच्चन्यायालय में सेवा के बारे में उसके वेतन में से

(क) निवृत्ति-वेतन की राशि और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में अपने को देय निवृत्ति-वेतन के एक प्रभाग के बदले में उसका संराशिकृत मूल्य प्राप्त किया है तो निवृत्ति वेतन के उस प्रभाग की राशि, और

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा मूल उपकंडिका (१) के स्थान पर रखी गयी।