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भारत का संविधान

 

द्वितीय अनुसूची

(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में निवृत्ति उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान का समतुल्य निवृत्ति-वतन, घटा दिया जाएगा।]

(२) जो व्यक्ति इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले—

(क) किसी प्रान्त में के उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७६ के खंड (१) के अधीन तत्स्थानी राज्य में के उच्चन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, अथवा
(ख) किसी प्रान्त में के उच्चन्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य में के उच्चन्यायालय का (मुख्य न्यायाधिपति और अन्य) कोई न्यायाधीश बन गया है,

[१]उसको, यदि वह ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित दर से अधिक चेतन पाता था तो, यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में उक्त उपकंडिका में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी राशि पाने का हक्क होगा जो कि इस प्रकार उल्लिखित वेतन तथा ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले उसे मिलने वाले वेतन के अन्तर के बराबर है।

[२][(३) कोई व्यक्ति जो संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, के प्रारम्भ से ठीक पहिले प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित किसी राज्य के उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति का पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारम्भ पर उक्त अधिनियम द्वारा यथा संशोधित उक्त अनुसूची में उल्लिखित किसी राज्य के उच्चन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले अपने वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में कोई राशि ले रहा था वह एंगे मुख्य न्यायाधिपति के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में वही राशि पाने का हकदार होगा

११. इस भाग में, जब तक प्रसंग में अन्यथा अपेक्षित न हो—

(क) "मुख्य न्यायाधिपति" पदावधि के अन्तर्गत कार्यकारी मुख्य न्यायाधिपति है तथा "न्यायधीश" पद के अन्तर्गत तदर्थ न्यायाधीश है।
(ख) "वास्तविक सेवा" के अन्तर्गत है—
(१) न्यायाधीश के रूप में कर्तव्य करते हुए अथवा ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में, जिन का कि राष्ट्रपति की आकांक्षा पर उसने निर्वहन करने का भार लिया हो न्यायाधीश द्वारा व्यतीत समय;

  1. संविधान (कठिनाइयां दूर करना) आदेश संख्या ४ की कंडिका २ उपबन्ध करती है कि २६ जनवरी, १९५० से भारत के संविधान की द्वितीय अनुसूची निम्नलिखित अनुकूलन के अधीन रहकर प्रभावी होगी, अर्थात्—

    (२) कंडिका १० की उपकंडिका (२) में खंड (ख) के पश्चात् समस्त शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित रख दिये जायेंगे, अर्थात—
    "उसको यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकड़िका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में उतनी राशि, यदि कुछ हो, पाने का हक्क होगा जितनी से कि वह वेतन ऐसे आरम्भ से ठीक पहिले प्रान्त में के उपन्यायालय के यथास्थिति मुख्य न्यायाधिपति या किसी अन्य न्यायाधीश को देय वेतन से कम पड़ता है।"
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा मूल उपकंडिका (३) और (४) के स्थान पर रखी गयी।