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भारत का संविधान१६६


षष्ठ अनुसूची

(६) राज्यपाल संबद्ध स्वायत्तशासी जिलों या प्रदेशों के अन्तर्गत वर्तमान आदिमजाति-परिषदों अथवा प्रतिनिधान रखने वाले अन्य आदिमजाति संघटनों से परामर्श कर के जिला-परिषदों और प्रादेशिक परिषदों के प्रथम गठन के लिये नियम बनायेगा नशा ऐसे नियमों में निम्नलिखित बातों के लियं उपलब्ध होगे—

(क) जिला-परिषदों और प्रादेशिक परिषदों की रचना तथा उन में स्थानों का बटवारा;
(ख) उन परिषदों के लिये निर्वाचनों के प्रयोजनार्थ प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन;
(ग) ऐसे निर्वाचनों में मतदान के लिये अर्हताएं तथा उन के लिये निर्वाचक नामावलियों का तैयार कराना;
(घ) ऐसे निर्वाचनों में ऐसे परिषदों के सदस्य चुने जाने के लिये अर्हताएं;
(ड.) ऐसी परिषदों के सदस्यों की पदावधि;
(च) ऐसी परिषदों के लिये निर्वाचन या नामनिर्देशन से सम्बद्ध या संसक्त कोई अन्य विषय;
(छ) जिला और प्रादेशिक परिषदों में प्रक्रिया और कार्य-संचालन;
(ज) जिला और प्रादेशिक परिषदों के पदाधिकारियों और कर्मचारी-वृन्द की नियुक्ति।

(७) अपने प्रथम गठन के पश्चात् जिला या प्रादेशिक परिषद् इस कंडिका की उपकंडिका (६) में उल्लिखित विषयों के बारे में नियम बना सकेगी, तथा—

(क) निचली स्थानीय परिषदों या मंडलियों की रचना तथा उनकी प्रक्रिया और उनके कार्य-संचालन का, तथा
(ख) यथास्थिति जिले या प्रदेश के प्रशासन विषयक कार्य सम्पादन से सम्बद्ध समस्त साधारण विषयों का, विनियमन करने वाले नियम भी बना सकेगी।

परन्तु जब तक जिला अथवा प्रादेशिक परिषद द्वारा इस उपकंडिका के अधीन नियम नहीं बनाये जाते तब तक प्रत्येक ऐसी परिषद् के लिये निर्वाचनों के, उसके पदाधिकारियों और कर्मचारी-वृन्द के तथा प्रक्रिया और कार्य-संचालन के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (६) के अधीन राज्यपाल द्वारा बनाये हुए नियम प्रभावी होंगे;

परन्तु यह और भी कि इस अनुसूची की कंडिका (२०) से संलग्न सारणी के भाग (क) में के क्रमशः पद ५ और ६ में के अन्तर्गत क्षेत्रों के बारे में उत्तर कछार और मिकिर पहाड़ियों का यथास्थिति मंडलायुक्त या उपविभागीय पदाधिकारी पदेन जिला-परिषद् का सभापति होगा, तथा जिला परिषद् के प्रथम गठन के पश्चात् छःवर्ष की कालावधि तक राज्यपाल के नियंत्रण के अधीन रहते हुए उसे, जिला-परिषद् के किसी संकल्प या निर्णय को रद्द या रूपभेद करने की अथवा जिला-परिषद् को, जैसी वह उचित समझे, वैसी हिदायतें देने की शक्ति होगी तथा जिला-परिषद् ऐसी दी हुई प्रत्येक हिदायत का अनुवर्तन करेगी।

३. जिला-परिषदों और प्रादेशकि परिषदों की विधि बनाने की शक्ति.-(१) स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् को ऐसे प्रदेश के भीतर के सब क्षेत्रों के बारे में, तथा स्वायत्तशासी जिले के भीतर की प्रादेशिक परिषदों के, यदि कोई हों, प्राधिकाराधीन क्षेत्रों को छोड़ कर उस जिले के भीतर के अन्य सब क्षेत्रों के बारे में, निम्नलिखित विषयों के लिये विधियां बनाने की शक्ति होगी—

क) किसी रक्षित वन की भूमि को छोड़ कर अन्य भूमि का, कृषि या चराई के प्रयोजन के लिये अथवा निवास या कृषि से भिन्न अन्य प्रयोजनों के लिये अथवा किसी ऐसे अन्य प्रयोजन के लिये, जिससे किसी ग्राम या नगर के निवासियों के हितों की उन्नति सम्भावनीय हो, बंटन, दखल या उपयोग अथवा अलग रखना;