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परिशिष्ट

संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५

भारत के संविधान के अपर संशोधन के लिये अधिनियम

(२७ अप्रैल, १९५५)

भारत गणराज्य के छठे वर्ष में संसद् द्वारा निम्नरूपेण अधिनियमित हो—

संक्षिप्त नाम १. यह अधिनियम संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, १६५५ के नाम से ज्ञात हो सकेगा।

अनुच्छेद ३१ का
संशोधन
२. संविधान के अनुच्छेद ३१ में खंड (२) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा, अर्थात्—

(२) कोई सम्पत्ति, सार्वजनिक प्रयोजन के सिवाय, और ऐसी किसी विधि के, जो इस प्रकार अर्जित या अधिग्रहीत सम्पत्ति के लिये प्रतिकर के लिये उपबन्ध करती है और या तो प्रतिकर की राशि को नियत करती है या उन सिद्धान्तों और रीति का उल्लेख करती है जिनसे प्रतिकर निर्धारित होना है और दिया जाना है, प्राधिकार के सिवाय अनिवार्यतः अर्जित या अधिग्रहीत न की जायेगी; और किसी ऐसी विधि पर किसी न्यायालय में इस आधार पर आपत्ति नहीं की जायेगी कि उस विधि द्वारा उपबन्धित प्रतिकर पर्याप्त नहीं है।

(२क) जहां किसी सम्पत्ति के स्वामित्व के या कब्जा रखने के अधिकार का हस्तान्तरण राज्य या ऐसे किसी निगम को,जो कि राज्य के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन है, करने के लिये उपबन्ध विधि नहीं करती है वहां इस बात के होते हुए भी कि वह किसी व्यक्ति को उसकी सम्पत्ति से वंचित करती है उसकी बाबत यह न समझा जायेगा कि वह सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन या अधिग्रहण के लिये उपबन्ध करती है।"

अनुच्छद ३१क का ३. संविधान के अनुच्छद ३१क में—

(क) खंड (१) के स्थान में निम्नलिखित खंड रख दिया जायेगा और यह समझा जायेगा कि वह सदा ही ऐसे रखा हुआ था, अर्थात्-

"(१) अनुच्छेद १३ म अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी—

(क) किसी सम्पदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिये या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या रूपभेदन के लिए, या
(ख) किसी सम्पत्ति का प्रबन्ध या तो लोक हित में या उस सम्पत्ति का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्य द्वारा मर्यादित कालावधि के लिए ले लिये जाने के लिए, या
(ग) दो या अधिक निगमों को या तो लोक हित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबन्ध सुनिश्चित करने की दृष्टि से समामेलित करने के लिए, या
(घ) निगमों के प्रबन्ध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबन्ध निदेशकों, निदेशकों या प्रबन्धकों के किन्हीं अधिकारों के या अंशधारियों के किन्हीं मतदान अधिकारों के निर्वापन या रूपभेदन के लिये, या

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