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भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ ३२-३४
सांविधानिक उपचारों के अधिकार

इस भाग द्वारा
दिये गये अधि
कारों को प्रवर्तित
करने के उपचार
३२. (१) इस भाग द्वारा दिये गये अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिये उच्चतमन्यायालय को समुचित कार्यवाहियों द्वारा प्रचालित करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।

(२) इस भाग द्वारा दिये गये अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिये उच्चतमन्यायालय को ऐसे निर्देश या आदेश या लेख, जिन के अन्तर्गत बन्दी-प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार इच्छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।

[१](३) उच्चतमन्यायालय को खंड (१) और (२) द्वारा दी गई शक्तियों पर बिना प्रतिकूल प्रभाव डाले, संसद् विधि द्वारा किसी दूसरे न्यायालय को अपने क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (२) के अधीन प्रयोग की जाने वाली सब अथवा किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने की शक्ति दे सकेगी।

(४) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबन्धित अवस्था को छोड़ कर इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलम्बित न किया जायेगा। इस भाग द्वारा
प्रदत्त अधिकारों
का बलों के लिये
प्रयुक्ति की
अवस्था में, रूप-
भेद करने की
संसद् की शक्ति

३३. संसद् विधि द्वारा निर्धारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा दिये गये अधिकारों में से किसी को सशस्त्र बलों अथवा सार्वजनिक व्यवस्था-भार वाले बलों के सदस्यों के लिये प्रयोग होने की अवस्था में किस मात्रा तक निर्बन्धित या निराकृत किया जाये ताकि उनके कर्तव्यों का उचित पालन तथा उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे।

जब किसी क्षेत्र
में सेनावधि
प्रवृत्त है तब ईस
भाग द्वारा दिये
गये अधिकारों
पर निर्बन्धन

३४. इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी संसद् विधि द्वारा संघ या राज्य की सेवा में के किसी व्यक्ति को, अथवा किसी अन्य व्यक्ति को, किसी ऐसे कार्य के विषय में तारण दे सकेगी जो उसने भारत राज्य क्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहां सेना-विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाये रखने या पुनःस्थापन के संबंध में किया है अथवा ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन किसी दिये गये दंडादेश, किये गये दंड, आदेश की हुई जब्ती, अथवा किये गये अन्य कार्य को मान्य कर सकेगी।


  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३२ का खंड (३) लुप्त कर दिया जाएगा; और खंड (२) के पश्चात् निम्नलिखित नया खंड अन्तःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—
    "(२) खंड (१) और (२) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उच्चन्यायालय को ऐसे राज्य-क्षेत्रों में जिन के संबंध में वह क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है, किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को समुचित अवस्थाओं में, जिसके अन्तर्गत उन राज्य-क्षेत्रों के अन्दर कोई सरकार भी है, इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किन्हीं के प्रवर्तित कराने के लिए, निदेश या आदेश या लेख, जिनके अन्तर्गत बन्दी, प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण लेख के समान लेख भी है या उनमें से कोई निकालने की शक्ति होगी।"