पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/११८

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अपहृता नारियों के लिए अपील १०५ ETC. जो गरीब घरों का आभूषण थीं, आज उजाड़ और बरबाद हो गई हैं। उन्हें दुराचारियों ने अपने घरों से जबरदस्ती दूर कर ऐसी हालत में डाल दिया है, जो मानवता के नाम पर कलंक है। यदि हमें मानवता को फिर से उसके पुराने स्थान पर प्रतिष्ठित करना है, तो हमारा कर्तव्य है कि हम उन अभागी औरतों को उनकी वर्तमान पतित दशा से निकालें और उनको उनकी पुरानी परिस्थिति में पहुँचा दें। यदि हम ऐसा न कर पाएँ, तो मानव-इतिहास में हमारा कोई भी स्थान न होगा और आनेवाली पीढ़ियां हमें जानवरों से भी गया-बीता समझेगी। इस सत्कार्य में जो लोग हर प्रकार की मुसीबतों को झेलकर और विभिन्न बाधाओं की चिन्ता न करते हुए लगे हुए हैं, उन्होंने देश और मनुष्य जाति के प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया है। इसके लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। यह ठीक है कि यह समस्या इतनी महान है कि जो कुछ अब तक हो पाया है, वह तुच्छ मालूम पड़ता है। किन्तु इस थोड़े-से नतीजे को हासिल करने में ही हमें कितनी मेहनत और जी तोड़कर काम करने की ज़रूरत हुई है । अगर हम इसका विचार करें, तो हमें अनुमान सकता है कि यदि मानवता के खंडहरों से हमें ये आभूषण बचाने हैं, तो अभी कितना काम हमें और करना होगा। यह स्पष्ट कि ऐसे महान कार्य को सफलता से पूरा करने के लिए जनता और सरकार का सहयोग ज़रूरी है । हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की जनता और सरकार दोनों का यह कर्तव्य है कि इस काम में पूरी-पूरी सहायता दें। ऐसा न करना, न केवल उन आश्वासनों के खिलाफ होगा, जो दोनों सरकारों ने एक दूसरे को दिए हैं, बल्कि समाज और सभ्यता के सब सिद्धान्तों के भी प्रतिकूल होगा। हमें उन अपराधियों की आत्मा को भी जगाना है, जिनके कब्जे में यह औरतें हैं और जो इस प्रकार उनसे व्यवहार करते हैं कि मानो बे बाजार की कोत बस्तुएँ या जीती हुई लूट हों। मैं उनसे अपील करूँगा कि वह अपनी गलतियाँ महसूस करें और इस पर विचार करें कि उनके इस गलत रास्ते पर चलने से समाज की कितनी हानि होती है। इस महा अपराध का दण्ड देते समय इस बात का कोई विचार नहीं किया जा सकता कि अपराधियों ने यह काम धर्म के नाम पर, या प्रतिशोध या लूट- खसोट की भावना से प्रेरित होकर किया था। यदि उन्हें फिर से मानव अधि-