पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१४३

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१२८ भारत की एकता का निर्माण ट्रांसपेरेंट सिन्सिएरिटी ( विशुद्ध ईमानदारी ) वाला व्यक्ति और कोई नहीं है। उन्होंने भी उपाय कर देखा और कहा कि “भाई क्यों डरते हो? हम आपका बुरा नहीं चाहते, भला ही चाहते हैं ।" लेकिन न तो वे सुनते हैं, और न मानते ही हैं। अब उसका क्या उपाय है ? और दूसरी ओर यह भी होता है कि जितने मुसलमान वहां ये अखबार पढ़ते हैं या उनका रेडियो सुनते हैं, उनका ठीक दृष्टिकोण हो ही किस तरह सकता है। ये दूसरी चीजें समझ ही नहीं सकेंगे। उसमें जब तक फर्क न आए, तब तक हमें जाग्रत और सावधान रहना है । इसका मतलब यह नहीं है कि हमें उनके साथ कोई झगड़ा करना है। हमें तो उनकी भलाई का ही ध्यान रखना है । लेकिन हमारे यहां उसका जहर न फैले, उतना हमें जरूर सँभालना है । हैदराबाद का किस्सा खत्म होने पर वहां जो हालत हुई और उसके बाद वहां हिन्दोस्तान के पक्ष में जो प्रदर्शन हुआ, उससे हमें पूरा विश्वास आता है और आना भी चाहिए। दुनिया को भी यह विश्वास आना चाहिए। हमें और दुनिया भर को जो चीज़ इतनी भयंकर डरवाली लग रही थी, वह सब चीज़ गलत निकली। यह एक सचाई है कि गान्धी जी की इस प्रकार की मृत्यु से हमारे देश का वातावरण ही वदल गया। हमें यह मानना चाहिए कि उनका आशीर्वाद वहां से भी हमारे देश को बराबर प्राप्त हो रहा है। जाते हुए भी वह हमारे देश की एक बहुत बड़ी समस्या को सदा के लिए हल कर गए। उनके सन्देश को अमल में लाने की हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए। आपने इस मानपत्र में, स्टेटों के बारे में मैंने जो कुछ किया, उसका जिक्र किया है । हैदराबाद के बारे में हमारी गवर्नमेंट ने जो कुछ किया, वह ठीक ही किया । सब स्टेटों के साथ, सब प्रिन्सों के साथ, हमने वायदा किया था कि भाई किसी प्रिन्स या किसी राजा का हमें अलग फैसला नहीं करना है । हम सब का एक ही साथ और एक ही तरह का फैसला करेंगे। लेकिन हैदराबाद के लिए हमने अलग समझौता किया। पहले तो उसने दो महीने की मोहलत मांगी कि हम को पन्द्रह अगस्त १९४७ के बाद भी दो महीना दो। १५ अगस्त ४७ के पहले और सब प्रिंसेज़ तो भारत में मिल गए थे, केवल जूनागढ़, काश्मीर और हैदराबाद ये तीन ही रह गए थे। जूनागढ़ लो एक छोटी चीज़ थी, खाहमख्वाह किसी ने उस को गलत सलाह दी और वह उसमें फंस गया। लेकिन हैदराबाद का किस्सा बड़ी चीज थी, हमारे उस समय के गवर्नर-जनरल लार्ड