पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/३१८

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भारतक मार्घन राजवंश “दिल्लीयर अलाउद्दीनने अपने भाई उरिदासे काही कि धमीरको ज। नैत्रह से मुझ कर दिया करता था, परन्तु इरा सुन हमीर नहीं देता है । यद्यपि ३६ चा वीर है और उसका जीतना दिन है, तथापि इस समय वह यज्ञकार्य अगा हुआ है, अत. यह भोका ठीक है । तुम जाकर इसके देशको विध्यैस करो। यह सुन उगा ८००० सयार कर रवाना हुआ और युनासा नवकि नीरपर पड़ा। हाल आसपास के गांवों को जलाने लगा। इसपर हम्मको सेनापति भीमसह और धर्मसिंहने जाए उसे मस्त क्लियो । जब युद्धमें विजय प्राप्त कर भीमसिह रणथमोरक्की तरफ चला र निक चीर गुदमें प्राप्त हुभा झटका माल अपने अपने घर पहुंयाने चले गये तय मौका देख वची हुई फोनसे उलगवाने मीमसिंहका पीछा किया और उसे मार डाला । इस समय धर्मसिंह पाउ रह गया था। इस बात में अप्रसन्न हो इम्भीर उस { धर्मसिंह) की आंखें निकलेवा दी और इसके स्थान पर अपने मई भोगी नियत कर दिया । फुछ समय ब्रीद राजकी अपशाला घोछमें चमारी फैल गई और बहुतसे घड़े मर गये । इपर रानाको बर्ह चिन्ता हुई । जब यह वृत्तान्त धर्मसिंह के मालूम हुअा त उन हम्मीसे हलाया ॐि यदि मुझे और मेरे पूर्व पदपर निपत कर दिया जाय ती जितने पोई मरे हैं इनसे दुगनै घोड़े मैं आपकी भेट झा दूगा । यह सुन हमर लालचमें गया और उसने चर्मइफ पीड़ा अपने पहले स्थान पर नियत कर दिया । धर्मेसने भी ममा न्हून ज्यका साना भर दिया। इससे राजा उससे प्रसन्न हुने लगा। इन धमनिका पक्ष लेकर मीरने अपने भाई मनका निरावर किंया । इसपर वह फाशयाका गहना कर अपने छोट माई पानि ले बिल्लीके बादशाह अल्लाउद्दीनके पास या बाया । बादशाने इसका बड़ा दर सत्कार कर इसे मार दी।