पृष्ठ:भारत के प्राचीन राजवंश.pdf/९

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'आगारे अजम' में लिखा है कि पहले 'मीखी' अक्षरोको आर्या कहते थे। यह नाम ठीक ही प्रतीत होता है, क्योंकि उसमें लिखी हुई भाषा आर्य संस्कृत से मिलती हुई है।

दूसरी पुरानी लिपि पारसियोकी पहलवी थी। इसके भी बहुत से शिलालेख मिले हैं। इसके अक्षरोका आकार कुछ कुछ खरोष्टि अक्षरोंसे मिलता हुआ है। परन्तु यह दाहिनी तरफसे लिखी जाती भी।

तीसरी लिपि सद अवस्ताकी पुरानी प्रतियोमें लिखी मिलती है। यह पुस्तक जरदश्ती अर्थात अग्निहोनी पारसियोंके धर्मकी है। इसी लिपि ? लिपिकी तरह दाहिनी तरफसे लिखी जाती थी। परन्तु इसमें लिखी इबारत संस्कृत से मिलती है अरबीसे नहीं। बड़ा आशचर्य है कि आर्यभाषा सिमेटिक ( अरबी ) जैसे अक्षरोंमें उल्टी तरफसे लिखी जाती थी। यह विषय बड़े वादविवादका है। इस लिये इस जगह इसके बारेमे ज्यादा लिखनेकी जरूरत नहीं है।

क्षत्रपोंके समयकी ब्राह्मी और खारोष्टिका नक्शा तो साहित्याचार्यजीने दे दिया है परन्तु ऊपर पहल्वी और अवस्ताका जिक्र आजानेसे इतिहासप्रेमियोंके लिये हम उनका भी नक़्शे आगे देंते है।

क्षत्रपोंके समयके अंकोका हिसाब भी, विचित्र ही था। वैसे कि पुस्तकमे प्रकट होगा। मारवाड़ राज्यके ( नागोर परगनेो मागलाद गौत्रमे ) दधिमा माना शिलालेख संवत २८९ भी इसी प्रकार खोदा गया है। जैसे - (२००) + (८०) + (९)

क्षत्रपोंके यंहा बड़े भाईके बाद छोटा भाई गद्पदी पर बैठता था। इस तरह जब सब भाई राज कर चुकते थे तब उनके बेटोकी बारी आती थी। यह रिवाज तुर्कोसे मिलता हुआ था। टर्की (रूस) में वंशपरम्परासे ऐसा ही होता आया है और आज भी यही रिवाज मौजूद है। ईरानके तुर्क बाद्शाहोमे यह किचनमा सुनी गई है कि जिस राजकुमारके माँ और बाप दोनों राज घरानेसे हो तभी उनका उत्तराधिकारी हो सकता है। राज्पूतानेकी मुसलमानी रियासत तकमे भी कुछ ऐसा ही कायदा है। कि गद्दी पर नवाबका ही लड़का बैठ सकता है जो माँ और बाप दोनोंकी तरफसे अर्थात नवाब अमीरुद्दौल्लाकी औलाद है।