पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/११६

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भारत-भारती इतिहास में इस देश को वाणिज्य-वृद्धि प्रसिद्ध है, अन्यान्य देशों से वहाँ सम्बन्ध इसका सिद्ध है । बन कर यहाँ वर वस्तुएँ सुत्र ही जाती रहीं, नर-रचित कहलात न थी, सुर-चित्र कहलाती रही ।।९।। १--(क) इतिहास से पता लगता है कि हज़ार वर्ष पूर्व इस देश का मिश्र के साथ वाणिज्य-सम्बन्ध था । इसी प्रकार प्रायः पाँच हजार वर्ष पहले इस देश का बेबिलोनियों के साथ भी ब्राणिज्य-सम्बन्ध था । भारतवर्ष का इतिहास ।। ( ख ) प्राचोन समय में इस देश का व्यापार बहुत अच्छी दशा में था । यूरोप के कवियों, लेखकों और प्रवासियों ने इस देश की कारीगरी की, कला-कुशलता और वैभव की बहुत प्रशंसा की है। उस समय इस देश की वस्तुएँ दुनि के सब भागों में भेजी जाती थीं; और वह अन्य देशों की वस्तुओं से अधिक पसन्द की जाती थी ! #ले बालप्रान्त में १५ करोड का महीन कपडा, हर साल विदेशों को भेजा जाता धा { पटना में ३३०४२६ स्त्रियाँ, शाहाबाद में १५९५०० और गोरखपुर में १७५६०० यि चरखें परे सूत कात कर ३५ लाख रुपये कमाती थीं । इसी प्रकार दीनापुर की स्त्रियों ९ छाछ और पूनियाँ ज़िले की यिाँ १० लाख रुपये का सूत कातने का काम करते थे । सन् १७५७ ई० में अब ल क्लाइ मुशिद को गया था तब उसके सम्बन्ध में उसने यह लिखा था कि “यह शहर लन्दन के समान विस्तृत, आबाद और धनी है; इस शहर के लोग लन्दन से भी बढ़कर मालदार हैं।” | निबन्ध-संग्रह ६g ॐ० ।। ६.--:न्यु साहब ने लिखा है कि ॐि का ६ना हुआ कपड़ा देखने में मालूम होता है, जैसे देवताओं ने नाच हो । उसे देद् र अङ्ग भई। मालूम होता कि बहं मनुष्य का बनाया हुआ है ।