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भारत-भारती


जो देश के प्रहरी रहे घर फूकने वाले बने,
जो वीर वर विख्यात थे वे स्त्रैणता में हैं सने ।
सुर-कार्य-साधक जो रहे अव दुव्र्यसन में लीन हैं,
जो थे हज स्वाधीन वे ही आज विषयान हैं ! ।।२१३।।

छाया बनी थी औरत सर्वत्र जिनके साथ की।
वे आज कठपुतली बने हैं मत मन के हाथ की ।
मार्तड थे जो अब वही हिम-खण्ड होकर बह रहे,
वे अप कुछ न क भले ही, कम्# उनके कह रहे ।।२१४।।

जो शत्रु ॐ हृत्पट्ट पर लिखते रहे जय शेल से
वर वीरता के कार्य जितके पक्ष में ४ खेल-खें ।
रहने लगीं देखो, उन्हीं पर अत्र चढ़ाई काम की,
नैया डुबोई है उन्होंने पूर्वजों के नाम की ! ।।२१५।।

जो ईश के ऊरुज अतः जिन पर स्वदेश-स्थिति रही,
व्यापार, कृषि, गो-रूप में, दुहते रहे जो सच मही ।
३ वैश्य भी अब पतित होकर नीचे पढ़ पाते लो---
बलिये कह कर वैश्य से ‘बक्काल' कहलाने लगे ! ।।२१६।।

वह लिपि, कि जिसमें सेठ’ को ‘सठ ही लिखेंगे सत्र कहीं--सीखी उन्होंने और उनकी हो चुकी शिक्षा वहीं ! ॐ मुङियो ।