नज नारियों के साथ यदि कर्तव्य अपना पालते,
ज्ञान के गहरे गढ़ में जो न उनको डालते, ।
आज नर यो मूर्ख होकर पतित क्यों होते यहाँ ?
होत जहाँ जैसी स्त्रियों औसे पुरुष होते वहाँ ।।२३९ ।।
इले हुए पशु-पक्षियों को ध्यान तो रखते सभो,
पर नारियों की दुर्दशा क्या देखते हैं हम कसो ?
भने रवयं पशु-वृत्ति का साधन बना डाला उन्हें
न्लान-जनने मात्र को बनाने में पाला उन्हें ॥ २४० ।।
संतान
सन्तान कैसी है हमारा, सो हम से जान लो,
सुख देख कर ही बुद्धि से मन को स्वयं पहचान लें ।
स बीज के अनुरूप ही अंकुर प्रकट होते सदा,
म र सके रक्षित न हो ! सन्तान-सी भी सम्पदा ! ।। २४१ ।।
हैं आप बच्चे बाप जिनके पुष्ट हों वे क्या भला ?
श्चिर्य है, अत्र भी हमारा वं जाता है चल !
दुर्भाग्य ने दुवध कर के है हमें कैसा छला, ए !
रह गई है शेष अब तो एक ही शशि की कला ! ।।२४२।।
तनी अनिष्ट क्रिया हुनर हाय ! बाल्य-विवाह ने,
अन्धा बनाया है हमें उस नालियों की चाह ने !
- ! प्रस लिया है वीर्य-बल को मोह रूपो प्राह ने,
रे गुणों से है यहाथा इस कुरीति-वाह नै ।। २४३ ।।