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भविष्तत् खण्ड




किस भाँति जोना चाहिए, किस भाँति मरना चाहिए;
सो सब हमें निज पूजों में याद करना चाहिए।
पद-चिन्ह उनके यन्न-यूके खोज लेना चाहिए,
निज पूर्ध-गौरव-दीप को बुझने न देना चाहिए ।।१०।।

हम हिन्दुओं के सामने अादश जैसे प्राप्त हैं---
संसार में किस जानि के, झिप र गैस प्राप्त है ?
भव-सिन्धु में निज पुजई को ति से ही हम तरे',
यदि हो सकें जैसे न हम तो अनुकरण तो भी करे ।।११।।

क्या काव्ये दुष्कर है भला यदि इष्ट हो हमको कहीं ?
उस सृष्टि-कत्ता ईश कर शव क्या हममें नहीं ?
अाई है किसी भी कार के करते हुए अहम हैंतो
उस अग्विल-कल पिता के पुत्र ही हम ही हैं ।।१२।।

अपनी प्रयोजन-पूति क्या हम आप कर सकते नहीं ?
क्या तीस कोटि मनुष्य अपना नाम इर सकते नहीं ?
क्या हम सभी मानव नहीं किं ? हमारे कर नहीं ?
भी ॐ हम ने क्या अन्य रत्नाकर नई ? ।।१३॥

हे भइयो ! सेये बहुत, अब तो उठो, जागो, अहो ।
देखो जर अपनी दशा, अलस्य को त्या अहो !
कुछ पार है, क्या क्या समय के उलट फेर में है। 'चुके ?
अब भी सजग हे न क्या ? सर्वस्व तो हो खो चुके ।।१४।।