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भारत-भारती


प्रत्येक जन प्रत्येक जन के बन्धु अपनी जान लो,
सुख-दु:ख अपने बन्धुओं का आप अपना मान लो ।
सब दुःख यों बँट कब् धदेगा सौख्य पावेंगे सभी,
हाँ, शोक में भी सान्त्वना के गीत गावेंगे सभी ।। २५ ।।

साहाय्य दे सकते मनुज के मनुज हो, खग-मृग नहीं,
ये भी न दे ते सब मनुजता व्यर्थ है उनकी वहीं,
निज बन्धुओं की ही न हम यदि पा सके प्रियता यहाँ----
ते। उस महाप्रभु की कृपा-प्रियता हमें रक्खी कहाँ ? ॥ २६॥

अपने सहायक अप हो, होगा सहायक प्रभु तभी;
बस चाहने से ही क्रिस के सुख नहीं मिलता कमी ।।
कर, पद, हृदय, दृग, कई तुमको ईश ने सब कुछ दिया,
है कौन ऐसा काम जे तुमसे न जा सकता किया ? ।। २७ ।।

आने न दे अपने निकट औदास्य मथ उत्ताप के,
आत्मावलम्बी हो, न समझे तुच्छ अपने आपके है
भिन्न परमात्मा तुम्हारे अमर आत्मा से नहीं,
एकत्व वारि-तरङ्ग का भी भङ्ग हो सकता कहीं ? ॥ २८॥

अति धीरता के साथ अपने कार्यों में तत्पर रहो,
आपत्तियों के वार सारे वीर वर बन कर सहो ।
सब विन्न-भय मिट जायँगे, होगी सफलता अन्त में,
फिर कीति फैलेगी हमारी एक वार दिगन्त में ।। २९ ।।