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भविष्यत् खण्ड


वे तत्वदर्शी ऋषि हमारे कह रहे हैं यह कथा---
सत्यप्रतिष्ठाय क्रिया ( 8 ) फलाश्रय' सर्वथा ।। ७१ ।।

अाओ, चने शुभ साधना के अज से साधक सभी,
निज धम्म को रक्षा करे', जावन सफल होगा तभी ।
संसार अब देखे कि यदि हम आज हैं पिछड़े पड़े-
तो कल बराबर और परसी विश्व के आगे खड़े ।। ७२ ।।

ब्राह्मण बढ़ावे बाळ कें, ऋत्रिय बढ़ावे शक्ति के;
लब जैश्य निज वाणिज्य केर, त्यों शुद्र भी अनुरक्ति का ?
यों एक मन होकर सभी कर्तव्य के पालक बने’--
ते क्या न कोति-वितान चारों ओर भारत के तुने ? ।। ७३।।

ह' हे ब्राह्मण ! फिर पुर्नजों के तुल्य तुम ज्ञानी बने,
भूली न अनुपम आत्म-रव, धर्म के ध्यानी बने ।
कर देर चकित फिर विश्व के अपने पवित्र प्रकाश से,
मिट जायें फिर सब तम तुम्हारे देश के प्रकाश से ।। ७४ ।।

प्रत्यक्ष र सत्य तु इनि उ* खोते नहँ--..
ने आज यो सुन्न तुम लाञ्छित कभी हाते नहीं ।
यह इरिरि न भौज तुनको मगनी पड़ती कभी,
२पर तुम सुर जा कर थे मानदै सान सभा ।। ७५ ।।

हे क्षत्रियो । साचे तनिक, तुम आज कैसे हो रहे;
हम क्या कहे, ह दे तुम्हीं, तुम आज जैसे हो रहे ।
स्वाधीनता सारी तुम्हीं ने है न खोई देश की ?
अन कर विलासो, विहीं नैया डुबेइ देश की ! ।। ७६ ।।