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भविष्यत् खण्ड

यद्यपि अधिक जन भाग्य को हो कोसते हैं क्लेश में-
ऊचाभिलाषी वीर भी हैं किन्तु कुछ कुछ देश में ।।१२१।।

है होन शिक्षा की दशा पर दृष्टि उस पर भी गई,
फैला रहा है धूम हिन्दू-विश्व-विद्यालय नई ।।
श्री मालवीय-समान नेता, भूप मिथिलेश्वर-यथा,
देशार्थ मिञ्चक बन रहे है, धन्य हैं वे सथिः ।।१२२।।

आदर्श


यद्यपि कृपया कि अपञ्ययी ही हैं नो मानी यहाँ,
सत्कार्य में सर्वस्व के भी किन्तु हैं दान। यहाँ,
देशो चरेशों की दशा यद्यपि अभी बदली नहीं,
पर सर सयाजीराव-सम आदर्श नृप में हैं यहीं ।।१२३।।

यद्यपि समय के फेर ने वे दिव्य गुण छोड़े नहीं,
हैं किन्तु अब भी देश में अदर्श कुछ थोड़े नहीं ।
यदि जन्म लेते थे महात्मा भीष्म-तुल्य कभी यहाँ,
तो जन्मते हैं कुछ दृढ़त्रत लोकमान्य अभी यहाँ ।।१२४॥

श्री राममोहनराय, स्वामी दयानन्द सरस्वतो,
उत्पन्न करती हैं अभी यह मेदिनी ऐसे वसी ।
साफल्यपूर्वक हैं जिन्होंने रमत-संस्थाएँ रची,
है धूम सारे देश में जिनके विचारों से मची !!१२५॥

श्री रामकृष्णोपम महोत्मा, रामतीर्थोपम यतो,
ऐसे जनों से आज भी यह भूमि बनती वसुमती ।।

१. जैसे से सर तारकनाथ पालित।