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भारत-भारती

नेपाल ! अब वह चैन की देशी बजेगी कब यहाँ ?
आलस्य से अभिभूत हमके। कर्मयोग सिखाए ।
जिस वसुमती पर आपने बहु ललित लीलाएँ रच,
करुणानिधे ! इस काल उसके। आप यों न भुलाइए।।
पशु-तुल्य परवशता मिटे प्रकटे यथार्थ मनुष्यता,
इस कूपमण्डूकत्व सै परमेश, पिण्ड-छुड़ाइए।
जीवन गहन वन-सा हुआ है, भटकते हैं हम जहाँ,
प्रभुवर १ सदय होकर हमें सन्मार्ग पर पहुँचाइए।।
वह पूर्व को सम्पन्नता, यह वर्तमान विपन्नता,
अब ते प्रसन्न भविष्य की आशा यहाँ उपजाइए' ।।
वर मन्त्र जिसका मुक्ति था, परतन्त्र, पीड़ित है वहो,
फिर वह परम पुरुषार्थ इसमें शीघ्र हो प्रकटाइए।।
यह पाप-पूर्ण परावलम्बन चूर्ण होकर दूर हो,
फिर स्वावलम्बन का हमें प्रिय पुण्य पाठ पढ़ाइए ।
याकुल न हो, कुछ भय नहीं, तुम सब अमृत-सन्तान हो ।”
यह वेद की वाणी हमें फिर एक वार सुनाइए।
यह आय-भूमि सचेत हो, फिर को-भूमि बने अहा !
चूह प्रीति-नीति बड़े परस्पर, भीति-भाव भगाइए ।
किसके शरण होकर रहें ? अब तुम विना गति कौन है ?
हे देव वह अपनी दया फिर एक बार दिखाइए।

शुभम्