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भारत-भारती


मुंद रही दाने नयन भरपाई ‘गान्धारी' जहाँ,
पति-संग दमयन्ती' स्वयं बन बन फिरी मारी जहाँ ।
थे हो जहाँ की नारियेां ने धर्म का पालन किया,
झाश्च क्या फिर इंश ने जो दिव्यदल उदको दिया ।। ४३ ।।


अबला जने का श्रा-बल संसार में वह था नया,
चाहा उन्होंने तो अधिक क्या, रवि-उदय भी रुक गया !
जिस क्षुदः सुनि की दृष्टि से जल कर विहग भू पर गिरी,
वह भी सती के तेज-सम्मुख रह गयर निष्प्रभ निर}} ४४।।

इसने अनि कुमार को प्रसः ॐ उदकी चिकिंन्स में अपने पति की कायरक्रय करा लिया । इससे उनके नेत्र तो हो ही गये, साथ ही उन्हें तरुणस्य भी प्राप्त हो गई।

(ग) अंशुमती सुश्त नामक मुनीश्वर की स्त्री थी ! वह बड़ी पति| परायणा और दयालु थी । पति-सेवा और गियों की चिकित्सा करना हैं उसके मुख्य काम थे । दूर दूर से अनैक रोगी और इन-लुःखी मनुष्य उसके पास आते और वह उन सबका कुष्ट निवारण करके उन्हें सदुपर्देश दिया रती थी ।

१-(क) एक ब्राह्मण अपने कर्म-दोष से कोई हो गया था । उस| की स्वभाव भी अच्छा न था । किन्तु उसकी स्क्रीं पतिङ्गता थी । एक ऑरि रात को युद्द अपने पति को कन्धे पर चढ़ा कर उसकी इच्छा के | अनुसार कहीं लिए जाती थी। मार्ग में माण्डव्य ऋषि के शरीर से उस के पति के गैर या त्या ! उन्होंने कुद्ध होकर शाप दिया कि मुझसे