पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/२५

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अतीत खण्ड जिस पापिष्ठ को चरण स्पर्श हुआ है वह सूर्योदय होते ही मर जयगा । उस स्त्री ने कहा कि सूर्योदय ही न होगा ! उसके पतिव्रत धर्म के प्रभाव से हुआ भी ऐसा ही । सूर्य का उदय होना रुक गया । इससे बढ़ी हलचल मथे राई । अन्त में अनसूया देवी ने समझा बुझा कर सुदर्थ का उदय करवाया । सूर्योदय होते ही ऋथि का काय फलीभूत हुआ । बह छहू भर बाथी । किन्तु अनुसूया ने अपने प्रभाव से उसे फिर जिला दया और उसे नरोरा भी कर दिया । (ख) एक योग्गी वन में वृक्ष के नीचे बैठी थः । सहसा दो कौवों ने उसी वृक्ष पर काँव काँव मचा कर उसे कुद्ध कर दिया । ज्योंही उसने अपनी तीक्ष्ण दृष्टि ऊपर की ओर डाली त्यों ही वे दोनों पक्षी र झर नीचे गिर पड़े। अपना ऐसा अभाव देख कर योगी को गर्व हुई । एक बार उसी योगी ने किसी गाँव में जाकर एक गृहस्थ के द्वार पर भिक्षा के लिए अवाज़ दी । भीतर से -कण्ठ से उत्तर मिली जरा देर ठहरी । । ने कहा --हैं, यह अभागिनी स्त्री सुने ठहरने को कहती है, मेरे योग-बल को नहीं जानती ! अभी वह यह सोच ही रहा था कि अः दर से फिर आवाज़ आई-बेटे बहुत क्रोई मत कुद, अहाँ क ह रहते ।” अद्र तो योगी के अश्चर्भ का ठिकाना न २६ । स्त्री के बाहर आने पर वह उस के पैरों पर गिर पड़ा और पूछने लगा कि माँ ! तूने यह सब से जाना ? स्त्री ने कहा कि * *मैं एक साधण सन्नी हैं किन्तु मैं ने हमेशा अपने धर्म का पालन किया है । अभी ज मैंने तुम्हें करने को कहा था तब मैं अप३ मा ति की सैव में गई हुई थी । पति-सेवा ही मेरा धर्म है । अपने धर्म का पालन करने से मेरा हृदय इदना निंर्मल हो गया है कि उसमें कुछ बातें प्रतिविम्बित हो जाती हैं। यदि तुम्हें इससे अधिक जानने की इच्छा है तो अमुक व्यक्षि के पास जाओ । उस स्त्री के उपदेशानुसार वडू योर उस देशाध के पास गए और व्याध ने उसे अनेक सारगर्भित उपदेश दिये । वही उपदेश *व्यधिगीता के नामले प्रसिद्ध हैं।