पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/३३

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अतीत खण्ड संसार भर में आज जिसका छा रहा अतिक्क है, नीचा दिखा कर रूस को भी जो हुआ नि:शक्क है । जयपशि जे वर्द्धक हुअा है एशिया के हर्ष का, हैं शिष्य वह जापान भी इस बृद्ध भारतवर्ष कर }} ३७।। करती है कि हिन्दू अपने देश हिन्दुस्तान में विद्यई और कला-कौशल में प्रवीण होकर अन्य देशों में उसका प्रचार करने गये । (ख) यूनान के प्राचीन इतिहास से पता लगता है कि अपरिचित लोग पूर्व की ओर से आकर वहाँ बसे । वे बहुत बड़े बुद्धिमान्, छिन्। और कला-कुशल थे। उन्होंने वहाँ पर विद्या और औद्यक का प्रचार किया, वहाँ के निवासिधों को सभ्य और अपना विश्वासपात्र बनाया है (ग) अन्धकार पुरियन नौर यूनान का इतिहास बतलाता है कि ३ लोग जो पूर्व से कर यूनान में बसे थे और जिन्होंने वहाँ के अन् निवासियों को अधीन किया था, कैसे थे । वे देवताओं के कंहज थे । उनके पास अपना निज का सोना था और अधिकता से था । थे रेशम के कामदार ऊनी दुशाले ओते थे, हाथीदाँत की वस्तुएँ व्यबहार में जाते थे और बहुमूल्य रत्न के हार पहने थे । इत्यादि । इसके किंवा नदियों, पहाड़ों और झीलों के ऐसे बहुत से नाम यूनान के भूगोल में मिलते हैं जिनक अर्थ यूनानी भाषा में कुछ नहीं होता, परन्तु संस्कृत में पूर्णतया होता है। बत खेह है कि हिन्दुओं ने अपने प्यारे देश की याद में इन दियौ, पहाड़ों, झोला और शहरों के भी नाम अपने देश के दङ्ग पर ही रक्खे थे । | (घ) महाभारत से भी यह प्रकट है कि कुक्षेत्र के युद्ध के अन्तर हिन्दुओं के कितने ही घराने पश्चिम की ओर से और यूनान, फैन सिया, फिलस्तीन, कार्थेज़, रूम और मिस्र अदि देशों में जाकर बसे ।