पृष्ठ:भारत भारती - श्रि मैथिलिशरण गुप्त.pdf/४३

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•ti अतीत खण्ड दृष्टान्त दर्शन हो हमारी उच्चता के हैं बड़े, हैं कह रहे सबसे वह संसरि से होकर खड़े--- “हे विश्व ! भारत के विषय में फिर कुशङ्काएँ कराहुम दोनों का साक्य पहले आज भी झारे धरा ।। ९० }} यह क्या हुआ कि अभी अमो तो रो रहे थे तान से, हैं, और अब हँसने लगे में आप अपने आप से । में क्या कर, निज चेतना पर आ गई उनको हँसो, गीता-श्रवण के पूर्व थी जह मोह-माया में फँसी । ९१ । १-यदि यह बात सत्य हो ( जो निस्सन्देह सत्य ही है} कि केवल बड़ी बड़ी जातिथ ही सच्चे दार्शनिक और पूर्ण नशा उत्पन्न कर सकती हैं, तो हिन्दुओं को संसार में सबसे बड़ी जाति मानना ही पड़ेगः । प्रोफेसर मैक्समूलर साहब कहते हैं कि जो राज्य उन्नति के उच्चतम शिखर पर स्थित होता है, जिस राज्य में भीतर और बाहरी शत्रुओं के आक्रमण की कुछ ४ अशङ्का नहीं होतीं, जिस राष्ट्र के लोग धन सम्पत्ति की वृद्धि के साथ ही साथ अनेक विद्या-मन्दिर और विश्वविद्यालय स्थापित करके, बिना किसी चिन्न-बाधा के, विद्या की आलोचना में मन लार सकते हैं, उसी सभ्यः समुन्नत राष्ट्र में दर्शनशास्त्र का अविभई होता है।" | इससे यह सिद्ध होता है कि ऋपिल, गोतम और पतञ्जलिं जैसे अतीय दार्शनिक उत्पन्न करने के पहले ही हिन्दू-जाति सभ्यता के उच्चतम शिखर पर पहुँच चुकी थी। इन्दु सुपीरियरडी ।